बुधवार, फ़रवरी 18, 2015

सब कुछ होती जा रही सरहदें

जब तक रहेंगी नफ़रतें इस जहां में 
लुटती रहेंगी लोगों की मुहब्बतें । 
इंसां को न वो पूछते हैं, न हम 
बस सब कुछ होती जा रही सरहदें । 

न छटा अगर साया स्याह रात का 
कैसे सजेंगी खुशियों भरी महफ़िलें । 

मातम मनाते हैं मगर करते कुछ नहीं 
यूँ तो न लेगा कभी बुरा वक्त करवटें । 

कभी तुम दिल की सिलवटें भी निकालना 
निकालते हो रोज, कपड़ों की सिलवटें । 

छोटी हों या बड़ी ' विर्क ' कुछ फर्क नहीं 
अक्सर अधूरी ही रह जाती हैं हसरतें ।

दिलबाग विर्क 
*****
काव्य संकलन - साधना सार्थक रहेगी 
संपादक - जय सिंह अलवरी 
प्रकाशन - राहुल प्रकाशन, सिरगुप्पा 
वर्ष - 2008  

4 टिप्‍पणियां:

Pratibha Verma ने कहा…

कभी तुम दिल की सिलवटें भी निकालना
निकालते हो रोज, कपड़ों की सिलवटें ।

बहुत खूब।

shashi purwar ने कहा…

bahut sundar gajal dilbag ji hardik badhai

Malhotra vimmi ने कहा…

बेहतरीन गजल

कहकशां खान ने कहा…

सरहदें जमीन को तो बांट सकती हैं। पर दिलों में बहतीं भावनाओं को नहीं।

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