बुधवार, अप्रैल 29, 2015

हर शख़्स हो गुनहगार

अहमियत नहीं रखते पतझड़, बारिश और बहार 
गर दिल ख़ुश हो तो लगता हर मौसम ख़ुशगवार । 

छलकती आँखें, रोता दिल जाने क्या कहना चाहे 
शायद इन्हें पता न था, किस शै का नाम है प्यार । 

दिल को बेसबब परेशां देखकर सोचता हूँ मैं 
तुम्हीं तो नहीं हो, दिल में मची हलचल के जिम्मेदार । 

तुझसे दूरियाँ किसी क़यामत से कम नहीं लगती 
हर लम्हा आफ़त, हर लम्हा करे दिल बेकरार । 

समझे नहीं, जाने वाले की भी मज़बूरी होगी 
जब भी आई है याद मुझे, तड़पा है दिल हर बार । 

नफ़रतों की इस दुनिया में मुहब्बत करना गुनाह 
ख़ुदा करे ' विर्क ' दुनिया का हर शख़्स हो गुनहगार । 

दिलबाग विर्क 
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मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज़्बात " में से मेरी एक ग़ज़लनुमा कविता 

गुरुवार, अप्रैल 23, 2015

आम आदमी { कविता }

आम आदमी              
महज एक खबर है       
अख़बारों के लिए         
जब वह रोता है           
बेमौत मरता है             
तब वह छपता है 
           
आम आदमी
महज एक मुद्दा है                 
सरकारों के लिए                   
वह जिन्दा है                        
सरकार की                           
नीतियों के कारण       
वह मरने को मजबूर है          
दूसरी पार्टियों  के                  
घोटालों के कारण                  
                                           
सरकार और अख़बार            
चलते हैं                               
कॉर्पोरेट घरानों के बलबूते
कॉर्पोरेट घराने
चूसते हैं खून 
आम आदमी का 
इसलिए 
सरकारों और अख़बारों को
कोई लेना-देना नहीं
आम आदमी से

आम आदमी तो
महज एक खबर है
जो बासी हो जाती है
अगले ही दिन

आम आदमी तो
महज एक मुद्दा है
जो उछलता है
सिर्फ चुनावों में
और फिर खो जाता है 
अज्ञातवास में     
अगले पाँच सालों तक ।

 दिलबाग विर्क 
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शनिवार, अप्रैल 18, 2015

घड़ियाली आँसू ( कविता )


अध्यापक स्कूल जाने को
दौड़ता नहीं अब
होशियार बच्चे की तरह
उसे धकेला जाता है
जैसे धकेलते हैं माँ-बाप
नालायक रोंदू बच्चे को
चॉकलेट का लालच देकर 

स्कूल में अध्यापक 
चपड़ासी, क्लर्क, नौटँकीबाज
सब कुछ है
बस अध्यापक होने के सिवा 

शिक्षक से छीनकर
शिक्षण कार्य
भला चाहा जा रहा है
शिक्षा का
और शिक्षा के पतन पर
घड़ियाली आँसू बहा रहे हैं वो
जो खुद धकेल रहे हैं इसे 
रसातल में
नित नए प्रयोग करके ।

दिलबाग विर्क
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बुधवार, अप्रैल 15, 2015

दोस्तों के हाथ में खंजर मिला

धूप-छाँव-सा रंग बदलता मुकद्दर मिला 
ख़ुशी मिली, ख़ुशी के खो जाने का डर मिला । 
दुश्मनों से मुकाबिले की सोचते रहे हम 
और इधर दोस्तों के हाथ में खंजर मिला । 

यूँ तो की है तरक्की मेरे मुल्क ने बहुत 
मगर सोच में डूबा हर गाँव, हर शहर मिला । 

नज़रों ने दिया है किस क़द्र धोखा मुझे 
चाँद-सा चेहरा उनका, दिल पत्थर मिला । 

हालातों की क्या कहें, बद से बदतर मिले 
ऊपर से बेग़ैरत, बेवफ़ा बशर मिला । 

किसी मंज़िल पर पहुँचना नसीब में न था 
और चलने को 'विर्क' रोज़ नया सफ़र मिला । 

दिलबाग विर्क 
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मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज़्बात " से 

बुधवार, अप्रैल 08, 2015

चेहरा लाज़वाब पर दिल में दाग़ हैं बहुत

ज़िंदगी में गम-ख़ुशी, राग-विराग हैं बहुत 
गणित की तरह जोड़-घटा, गुणा-भाग हैं बहुत । 
उतना ख़ूबसूरत नहीं वो जितना सोचा था 
चेहरा लाज़वाब पर दिल में दाग़ हैं बहुत । 

वफ़ा के फल, फूल यहाँ कहीं मिलते ही नहीं 
हर-सू गुलशन, बगीचे, बाग़ हैं बहुत । 

कैसे छुपाऊँ, तेरे बिना कैसे कटे मेरे दिन 
सुर्ख आँखें, चेहरा उदास, सुराग़ हैं बहुत । 

आफ़ताब के मुक़ाबिल कोई क्या होगा 
यूँ रौशनी देने के लिए चिराग़ हैं बहुत । 

खुश रहने का ' विर्क ' बस हुनर होना चाहिए 
दीवाली, दशहरा, तीज और फाग हैं बहुत । 

दिलबाग विर्क 
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मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित काव्य संग्रह " सतरंगे ज़ज़्बात " से 

बुधवार, अप्रैल 01, 2015

दिल की उदासी का आलम ये है

जब से अपने हुए हैं बेगाने 
ग़म ने लगा लिए आशियाने । 

अहमियत दे बैठे जज़्बातों को 
तभी मिले हैं जख्मों के नजराने । 
दिल की उदासी का आलम ये है 
बहारों में भी ढूँढ़ लेता हूँ वीराने । 

हमने चाही जिसे वफ़ा सिखानी 
वो लगा हमें दुनियादारी सिखाने । 

ऐतबार के लायक नहीं ये दुनिया 
मतलब के हैं यहाँ सब याराने । 

किससे जवाबतलब करोगे ' विर्क '
होते हैं सबके पास कुछ बहाने । 

दिलबाग विर्क 
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काव्य संकलन - शामियाना 
संपादक - अशोक खुराना 
विजयनगर, बुदाऊँनी 
अगस्त 2010