जब से अपने हुए हैं बेगाने
ग़म ने लगा लिए आशियाने ।
अहमियत दे बैठे जज़्बातों को
तभी मिले हैं जख्मों के नजराने ।
दिल की उदासी का आलम ये है
बहारों में भी ढूँढ़ लेता हूँ वीराने ।
हमने चाही जिसे वफ़ा सिखानी
वो लगा हमें दुनियादारी सिखाने ।
ऐतबार के लायक नहीं ये दुनिया
मतलब के हैं यहाँ सब याराने ।
किससे जवाबतलब करोगे ' विर्क '
होते हैं सबके पास कुछ बहाने ।
दिलबाग विर्क
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काव्य संकलन - शामियाना
संपादक - अशोक खुराना
विजयनगर, बुदाऊँनी
अगस्त 2010
1 टिप्पणी:
बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति
उम्दा गज़ल
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