मंगलवार, मार्च 24, 2015

गांधारी-सा दर्शन

देखना खुद से होता है 
सुना दूसरों को जाता है 

दूसरे क्या सुनाते हैं आपको 
क्या सुनने को 
करते हैं विवश 
यह हाथ में नहीं आपके 

बहुत से शकुनी
बहुत से दुर्योधन 
बहुत से धृतराष्ट्र
अक्सर इतना शोर मचाते हैं 
कि दब जाती  है आवाज़ 
न सिर्फ़ 
भीष्मों की 
विदुरों की 
पांडवों की 
अपितु 
कृष्ण तक की 
कानून की देवी भी 
चूक जाती है न्याय से 
धोखा खा जाती है 
दलीलों से 
दरअसल 
गांधारी-सा दर्शन है उसका 
बाँध रखी है उसने भी 
आँख पर पट्टी 
देखने से परहेज है उसे 
वह सिर्फ सुनती है 
उसे यकीन है
कानों सुने उस सच पर 
जो सदैव कमतर होता है 
आँखों देखे सच से |

दिलबाग विर्क 
*****

5 टिप्‍पणियां:

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

कानों सुना सच सदैव कमतर होता है आँखों देखे सच से,और आँखों देखा भी अपने पक्ष का ही रहेगा पूर्ण सत्य नहीं जब तक तटस्थ दृष्टि रख, विभिन्न कोणों से उसका समग्र दर्शन न किया जाय.

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

sahi hai aisa hi hota hai

Rashmi Swaroop ने कहा…

इस दृष्टि से देखा गाँधारी सा दर्शन आज।

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब , मंगलकामनाएं आपको !

Malhotra vimmi ने कहा…

बिल्कुल सही एैसा ही होता है।

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