सदा नहीं रहता ये खुशगवार मौसम
खुशियों पर हावी हो ही जाते हैं गम ।
हालात बदलते कितनी देर लगे है
आई महूबब की याद, हुई आँख नम ।
दिल टूटे, चाहे रुसवा हो मुहब्बत
कब किसी की सुने, ये वक्त बेरहम ।
दोस्ती की अहमियत नहीं रही जब यहाँ
क्या अहमियत रखेगी लोगों की कसम ।
नफरतों की रात में मुहब्बत का चिराग
रौशनी तो है, मगर बड़ी मद्धिम-मद्धिम ।
बैठकर मसलों का जिक्र तो किया होता
फिर देखते, कसूरवार तुम थे या हम ।
बदले में भले ' विर्क ' बेवफाई ही मिले है
कुछ लोग फिर भी लहराएँ वफ़ा का परचम ।
दिलबाग विर्क
खुशियों पर हावी हो ही जाते हैं गम ।
हालात बदलते कितनी देर लगे है
आई महूबब की याद, हुई आँख नम ।
दिल टूटे, चाहे रुसवा हो मुहब्बत
कब किसी की सुने, ये वक्त बेरहम ।
दोस्ती की अहमियत नहीं रही जब यहाँ
क्या अहमियत रखेगी लोगों की कसम ।
नफरतों की रात में मुहब्बत का चिराग
रौशनी तो है, मगर बड़ी मद्धिम-मद्धिम ।
बैठकर मसलों का जिक्र तो किया होता
फिर देखते, कसूरवार तुम थे या हम ।
बदले में भले ' विर्क ' बेवफाई ही मिले है
कुछ लोग फिर भी लहराएँ वफ़ा का परचम ।
दिलबाग विर्क
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काव्य संकलन - हृदय के गीत
संयोजन - सृजन दीप कला मंच, पिथौरागढ़
प्रकाशन - अमित प्रकाशन, हल्द्वानी ( नैनीताल )
प्रकाशन वर्ष - 2008
3 टिप्पणियां:
कसूरवार तुम थे या हम ।
-मसला कभी सुलझता नहीं !
बहुत लाजवाब शेर ... प्रेम रस से सरोबर ...
बहुत ही सुंदर और लाजवाब।
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