बुधवार, अप्रैल 01, 2015

दिल की उदासी का आलम ये है

जब से अपने हुए हैं बेगाने 
ग़म ने लगा लिए आशियाने । 

अहमियत दे बैठे जज़्बातों को 
तभी मिले हैं जख्मों के नजराने । 
दिल की उदासी का आलम ये है 
बहारों में भी ढूँढ़ लेता हूँ वीराने । 

हमने चाही जिसे वफ़ा सिखानी 
वो लगा हमें दुनियादारी सिखाने । 

ऐतबार के लायक नहीं ये दुनिया 
मतलब के हैं यहाँ सब याराने । 

किससे जवाबतलब करोगे ' विर्क '
होते हैं सबके पास कुछ बहाने । 

दिलबाग विर्क 
*****
काव्य संकलन - शामियाना 
संपादक - अशोक खुराना 
विजयनगर, बुदाऊँनी 
अगस्त 2010 

1 टिप्पणी:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति
उम्दा गज़ल

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