बुधवार, जून 29, 2016

रिश्तों पर बर्फ

अहम् की पट्टी 
स्वार्थ के फाहे रखकर 
जब बाँध लेते हैं हम 
सोच की आँखों पर 
तब जम जाती है 
रिश्तों पर बर्फ 
दम घुट जाता है रिश्तों का 

दिल में गर्माहट रखकर 
बढाते हैं जब हाथ 
मिट जाती हैं सब दूरियां 
पिघल जाती है बर्फ 
जीवित हो उठते हैं रिश्ते 
प्यार की संजीविनी पाकर 

रिश्तों पर बर्फ 
जमने और पिघलने का 
कोई मौसम नहीं होता 
अविश्वास, अहम्, स्वार्थ  
जमा देते हैं बर्फ 
विश्वास, वफा, प्यार 
पिघला देते हैं इसे | 

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बुधवार, जून 15, 2016

प्रेम का मुकाम

तू दूर कब है मुझसे 
मैं अब मैं कहा हूँ 
एक चुके हैं हम दोनों 
जब निहारूं खुद को 
तुझे साथ पाया है प्रियतम 
कुछ भी तो नहीं चाहिए 
इसके सिवा 
प्रेम ने पा लिया है 
अपना मुकाम |

दिलबागसिंह विर्क
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