बुधवार, जून 15, 2016

प्रेम का मुकाम

तू दूर कब है मुझसे 
मैं अब मैं कहा हूँ 
एक चुके हैं हम दोनों 
जब निहारूं खुद को 
तुझे साथ पाया है प्रियतम 
कुछ भी तो नहीं चाहिए 
इसके सिवा 
प्रेम ने पा लिया है 
अपना मुकाम |

दिलबागसिंह विर्क
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2 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

बहुत बढ़िया

बेनामी ने कहा…

सादर

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