अच्छा नहीं लगता सुख
दुःख के बिना
क्योंकि एकरसता नीरस होती है
दुःख के बिना
क्योंकि एकरसता नीरस होती है
हर सुनी बात सच्ची हो
ये जरूरी तो नहीं
भले ही वो बात
निचोड़ हो
दुनिया भर के अनुभवों का
दुखों से तार-तार हुए
ज़िन्दगी के वस्त्रों पर
कब सुंदर लगते हैं
सुख के पैवंद
वे तो बस मुँह चिढ़ाते हैं
बेनूर ज़िन्दगी का ।
दिलबागसिंह विर्क
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2 टिप्पणियां:
लाजवाब
एक के बिना दूसरे की महत्ता कहाँ। दुख है इसी से सुख की प्रतीक्षा है। पर आपने ठीक कहा दुख की अति हो तो सुख पैबंद ही लगता है।
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