मंगलवार, मई 24, 2016

सुखों के पैवंद

अक्सर सुना है
अच्छा नहीं लगता सुख
दुःख के बिना 
क्योंकि एकरसता नीरस होती है 


हर सुनी बात सच्ची हो
ये जरूरी तो नहीं
भले ही वो बात
निचोड़ हो 
दुनिया भर के अनुभवों का

दुखों से तार-तार हुए
ज़िन्दगी के वस्त्रों पर
कब सुंदर लगते हैं
सुख के पैवंद
वे तो बस मुँह चिढ़ाते हैं 
बेनूर ज़िन्दगी का । 

दिलबागसिंह विर्क 

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2 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

लाजवाब

Asha Joglekar ने कहा…

एक के बिना दूसरे की महत्ता कहाँ। दुख है इसी से सुख की प्रतीक्षा है। पर आपने ठीक कहा दुख की अति हो तो सुख पैबंद ही लगता है।

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