बुधवार, जुलाई 13, 2016

रौशनी का घर

अक्सर डराता तो है अँधेरा
लेकिन तब तक 
जब तक हावी होता है यह
हमारी सोच पर 

हिम्मत का दामन थामते ही
खुलने लगते हैं रास्ते 
अँधेरे के एक क़दम आगे 
मिलता है घर रौशनी का 

दिलबागसिंह विर्क 
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4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-07-2016) को "आये बदरा छाये बदरा" (चर्चा अंक-2404) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Sonit Bopche ने कहा…

"अँधेरे के एक क़दम आगे
मिलता है घर रौशनी का"..
wah sir kya baat kahi. behtreen.

Pammi singh'tripti' ने कहा…

Nice.

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना...

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