बुधवार, नवंबर 23, 2016

बस यूं ही

चल यूं ही कुछ कर
समय व्यतीत करने के लिए
या फिर समय खराब करने के लिए
आखिर सब यही तो कर रहे हैं 
कोई प्रयोग के नाम पर
कोई विचारधारा के नाम पर
और कुछ नहीं कर सकता तो
कलम घसीट 
लोग राजनेता बने हुए हैं
समाजसेवक बने हुए हैं
धर्म गुरु बने हुए हैं 
इन यूं ही के कामों से
क्या पता तू भी बन जाए कवि कभी ।

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, नवंबर 16, 2016

दिल की खबर रखना

भले ही तुम बरसों तक जारी अपना सफ़र रखना 
पीछे इंतज़ार है तुम्हारा, थोडा ख्याल इधर रखना |

कभी दुश्मन बनकर लूटें, कभी दोस्त बनकर लूटें 
बड़े शातिर हैं ये लोग, इन लोगों पर नज़र रखना | 

तुम्हारे पहलू में है भले मगर ये तुम्हारा न रहेगा 
हसीनों की महफिल में हो, दिल की खबर रखना

नफ़रत के दौर में माना मुहब्बत कुछ नहीं मगर
आँखों के सामने सदा मुहब्बत के मंजर रखना |

सुना है बहुत ताकतवर हो, कोई नहीं तुम-सा 
हो सके तो दिल में ख़ुदा का थोड़ा डर रखना |

भले हर रोज छू लिया करो शोहरतों के नए शिखर
थक हार कर लौटना होगा, ' विर्क ' अपना घर रखना |

दिलबागसिंह विर्क 
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सांझा संग्रह - 100 क़दम 
सम्पादक - अंजू चौधरी, मुकेश सिन्हा  

बुधवार, नवंबर 09, 2016

दिल जलता है

बेबस होकर रोने के सिवा क्या मिलता है
हाले-दुनिया न सुना मुझको, दिल जलता है ।

देखना है तो बस इतना कि कब फटेगा ये
यूँ तो हर पल बगावत का लावा उबलता है ।

हालात बद से बदतर हुए हैं तो बस इसलिए
चलने देते हैं हम लोग, जो कुछ चलता है ।

बच्चों-सा मासूम है ये, हम-सा शातिर नहीं
मचलने भी दो इसको अगर दिल मचलता है ।

सितमगर की हुकूमत कब तक चलती रहेगी
आखिर वक़्त कभी-न-कभी रुख बदलता है ।

उसका शबाब कितना भी लाजवाब क्यों न हो
ये तो मुअय्यन है ' विर्क ' हर दिन ढलता है । 

दिलबागसिंह विर्क 
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काव्य संग्रह - 100 क़दम 
संपादक - मुकेश सिन्हा, अंजू चौधरी 
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