मंगलवार, जुलाई 25, 2017

मिले न मिले

इन आँखों को, कोई हसीं नज़ारा मिले न मिले 
जीना तो है ही, जीने का सहारा मिले न मिले |

मौजें ही अब तय करेंगी सफ़ीने का मुक़द्दर 
अब तो चल ही पड़े हैं, किनारा मिले न मिले | 

जो मिला, जैसा मिला, उसी से तुम निभा लो यार 
इस ख़ुदग़र्ज दुनिया में दोस्त प्यारा मिले न मिले | 

दिल की कोयल को गा लेने दो पतझड़ में गीत 
दौरे-दहशत में बहारों का इशारा मिले न मिले | 

मैं वस्ल के दिनों को जीना चाहता हूँ शिद्दत से 
क्या भरोसा ताउम्र साथ तुम्हारा मिले न मिले | 

कोशिश करो, ज़िंदगी का फूल पूरा खिल जाए अभी 
ये ख़ूबसूरत मौक़ा ‘ विर्क ’ दोबारा मिले न मिले | 

दिलबागसिंह विर्क 
*****

3 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जो है उसी में खुश रहना.......!

Meena sharma ने कहा…

बहुत सुंदर लिखा है सर ।
इन आँखों को, कोई हसीं नज़ारा मिले न मिले
जीना तो है ही, जीने का सहारा मिले न मिले।
सादर ।

Pawan kumar rathore ने कहा…

सुंदर रचना

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