दिल में कोई ग़लतफ़हमी
है तो सवाल कर
तेरी महफ़िल में आया
हूँ, कुछ तो ख़्याल कर।
मिल बैठकर सुलझाएगा
तो सुलझ जाएँगे मुद्दे
न लगा चुप का ताला,
बातचीत बहाल कर।
सोच तो सही, तेरे दर के सिवा कहाँ जाऊँगा
तेरा दीवाना हूँ,
न मुझे इस तरह बेहाल कर।
मैं पश्चाताप करूँगा
बीते दिनों के लिए
अपनी ग़लतियों का तू
भी मलाल कर।
मैं कोशिश करूँगा ‘विर्क’ तेरा साथ देने की
तोड़ नफ़रत की दीवार,
आ ये कमाल कर।
दिलबागसिंह विर्क
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10 टिप्पणियां:
@मिल बैठकर सुलझाएगा तो सुलझ जाएँगे मुद्दे, न लगा चुप का ताला, बातचीत बहाल कर......सौ झगड़ों का एक हल
बहुत ख़ूब ! क्या बात है ,एक से बढ़कर एक लाज़वाब ,आभार। "एकलव्य"
वाह वाह दिलबाग जी बहुत सुन्दर गजल बातचीत से ही खुशियां गुलजार कर आपकी गजल जीवन को सरल बना रही है साधारण से कथ्य को आपने गजल में ढाल दिया बहुत खूब बहुत आनंद आया बधाई आपको।
सरलता से अपनी बात कहना भी सुन्दर कला है। दिलबाग जी की रचना पढ़कर दिल बाग़-बाग़ हो गया।
बहुत ही सुन्दर गजल
वाह!!!
सुंदर सरल शब्दों में कहे गए शेर...
दिल में कोई ग़लतफ़हमी है तो सवाल कर
तेरी महफ़िल में आया हूँ, कुछ तो ख़्याल कर।
मिल बैठकर सुलझाएगा तो सुलझ जाएँगे मुद्दे
न लगा चुप का ताला, बातचीत बहाल कर।
बहुत खूबसूरत खयाल !
सुन्दर प्रस्तुति
बेहद खूबसूरत
लाजवाब
मिल बैठकर सुलझाएगा तो सुलझ जाएँगे मुद्दे
न लगा चुप का ताला, बातचीत बहाल कर।
बेहतरीन पंक्तियाँ। सुन्दर ग़ज़ल । हार्दिक बधाई । गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं ।6
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