बुधवार, अक्तूबर 11, 2017

दिल तो आख़िर दिल है, एक बार तड़पा होगा

उसकी महफ़िल में जब मेरा ज़िक्र हुआ होगा 
उसकी ख़ामोशियों ने कुछ तो कहा होगा।

क़समें वफ़ा की भुलाना आसां तो नहीं होता 
दिल तो आख़िर दिल है, एक बार तड़पा होगा।

जिनकी मतलबपरस्ती ने किया बदनाम इसे 
ख़ुदा मुहब्बत का ज़रूर उनसे ख़फ़ा होगा। 

प्यार करके मैंने क्या पाया, तुम ये पूछते हो 
मेरी रुसवाई का चर्चा तुमने सुना होगा।

दिल को यारो अब किसी का एतबार न रहा 
इससे बढ़कर भी क्या कोई हादसा होगा।

इस दर्द का अहसास तो होगा ‘विर्क’ तुम्हें
उम्मीदों का चमन कभी-न-कभी उजड़ा होगा।

दिलबागसिंह विर्क 
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5 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-10-2017) को
"कागज़ की नाव" (चर्चा अंक 2756)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Sweta sinha ने कहा…

वाह्ह्ह...लाज़वाब गज़ल।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बेहतरीन !

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर गजल.

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर।

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