बुधवार, नवंबर 29, 2017

जो झूठा होता है, वही बात बनाता है अक्सर

मेरे ख़्वाबों में तेरा चेहरा मुसकराता है अक्सर 
ग़म पागल दिल पर हावी हो जाता है अक्सर।

सच को कब ज़रूरत पड़ी किन्हीं बैसाखियों की 
जो झूठा होता है, वही बात बनाता है अक्सर ।

लाठी वाले जीतते रहे हैं यहाँ पर हर युग में 
इतिहास का हर पन्ना यही क़िस्सा सुनाता है अक्सर।

भले ही दामन भरा हो ख़ुशियों से, मगर ये सच है 
दर्द का लम्हा सबको अपने पास बुलाता है अक्सर।

जो हो चुके पत्थर वे क्या जाने अहमियत जज़्बातों की 
दिल तो दिल है ‘विर्क’, रोता है, तड़पाता है अक्सर।

दिलबागसिंह विर्क
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बुधवार, नवंबर 22, 2017

वो बात-बात पर हँसता है

वो बात-बात पर हँसता है 
लोगों को पागल लगता है।

आज हो रहा ये अजूबा कैसे 
आँधियों में चिराग़ जलता है।

सिकंदर होगा या फिर क़लंदर
जो दिल में आया, करता है।

वक़्त के साँचे में ढलते सब 
क्या वक़्त साँचों में ढलता है ?

सुना तो है मगर देखा नहीं 
पाप का घड़ा भरता है।

उसूलों की बात मत छेड़ो 
यहाँ पर ‘विर्क’ सब चलता है।

 दिलबागसिंह विर्क 
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मंगलवार, नवंबर 14, 2017

कब तक डराएगा, तेरे बिना जीने का डर

मुझे ख़ुदा न समझना, कहा था मैंने मगर 
तूने पागल समझा मुझे, किसके कहने पर।

मुझ पर अब ज़रा-सा यक़ीं नहीं रहा तुझको
क्या इससे बढ़कर होगा क़ियामत का क़हर।

बस ये ही बेताब हैं गले मिलने को वरना 
नदियों का इंतज़ार कब करता है सागर।

बेवफ़ाई आबे-हयात है तो, हो मुबारक तुझे 
मुझे तो मंज़ूर है, पीना वफ़ा का ज़हर।

इसका इलाज तो ढूँढना ही होगा, आख़िर
कब तक डराएगा, तेरे बिना जीने का डर।

तेरी असलियत को जानती है सारी दुनिया 
विर्क’ यूँ ही अच्छा बनने की कोशिश न कर।

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, नवंबर 08, 2017

धड़कनों को धड़कने का ये बहाना हो गया

तेरी चाहत में ख़ुद से बेगाना हो गया 
न जाने क्यों मैं इस क़द्र दीवाना हो गया।

सब कोशिशें नाकाफ़ी रही इसे रोकने की 
शमा जो जलती देखी, दिल परवाना हो गया।

तुझे याद न किया तो इल्ज़ाम आएगा वफ़ा पर 
धड़कनों को धड़कने का ये बहाना हो गया।

मुहब्बत कब रास आई है नफ़रतपसंदों को 
फिर क्या हुआ गर दुश्मन ये ज़माना हो गया।

राहे-इश्क़ में ख़ुशियाँ नहीं मिली तो न सही 
अपना तो ‘विर्क’ ग़म से याराना हो गया। 

दिलबागसिंह विर्क
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बुधवार, नवंबर 01, 2017

ख़ुशी की दौलत इंसानों के पास नहीं

जले का इलाज शमादानों के पास नहीं 
ग़मों का हिसाब दीवानों के पास नहीं।

बेवफ़ाई, बेहयाई ले बैठी है सबको 
ख़ुशी की दौलत इंसानों के पास नहीं।

सुकूं मिला तो मिलेगा अपनों के पास 
न ढूँढ़ो इसे, यह बेगानों के पास नहीं। 

आशिक़ों के काम की चीज़ है, वहीं देखो 
ये दिल होता हुक्मरानों के पास नहीं।

मुल्क बेचकर घर भरते रहते हैं अपना 
शर्मो-हया सियासतदानों के पास नहीं ।

छूट चुके हैं जो तीर, लगेंगे निशाने पर 
कोई इलाज अब कमानों के पास नहीं। 

ज़िंदगी की उलझनों में उलझते चले गए 
इनका हल ‘विर्क’ नादानों के पास नहीं।

दिलबागसिंह विर्क 
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