कुछ सच को हमारी हिमायत ज़रूरी है
कुछ इस पर ख़ुदा की इनायत ज़रूरी है।
आदमीयत को ज़िंदा रखना ही होगा
आदमी के लिए ये निहायत ज़रूरी है।
बुज़ुर्गों-सी सयानफ़ आएगी आते-आते
बच्चों के लिए थोड़ी रियायत ज़रूरी है।
न पसारो पाँव अपने चादर से ज्यादा
ख़ुशहाली के लिए किफ़ायत ज़रूरी है।
भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में सकूं के लिए
सबको ‘विर्क’ वाक्, मंत्र, आयत ज़रूरी है।
दिलबागसिंह विर्क
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1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-12-2017) को "सत्य को कुबूल करो" (चर्चा अंक-2825) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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