कोई ज़रूरी तो नहीं हर बार फिसलना
कोशिशों से ही मुमकिन होगा संभलना ।
अगर फ़ासिले दिलों के दूर करने हैं तो
दो क़दम मैं चलूँगा, दो क़दम तुम चलना।
घर जला दो किसी का, ये तुम्हारी मर्ज़ी
वरना काम है इस शमा का तो बस जलना।
बेक़रार क्यों हुए तुम ढलती शाम देखकर
फिर सवेर होगी, बताता है दिन का ढलना।
तुम उसे मान लो ख़ुदा की इनायत ही
जो रंग लाए वक़्त का करवट बदलना ।
आफ़तों से ‘विर्क’ कब तक बचेंगे हम
ख़ुद-ब-ख़ुद सीख जाएगा दिल बहलना।
दिलबागसिंह विर्क
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5 टिप्पणियां:
अगर फ़ासिले दिलों के दूर करने हैं तो
दो क़दम मैं चलूँगा, दो क़दम तुम चलना।
बहुत खूब। सुंदर गजल।
बहुत सुन्दर आदरणीय दिलबाग विर्क जी
घर जला दो किसी का, ये तुम्हारी मर्ज़ी
वरना काम है इस शमा का तो बस जलना।
वाह शानदार
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-04-2017) को "करो सतत् अभ्यास" (चर्चा अंक-2934) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीया देवी नागरानी जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
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