मंगलवार, मई 29, 2018

ये दिल नादां क्या-क्या करे


कभी उम्मीद बँधाए और कभी आह भरे
न पूछ मुझसे, ये दिल नादां क्या-क्या करे।

कभी सोचे तदबीर से पलट दूँगा ज़माना
कभी ये दिल अपनी ही तक़दीर से डरे।

कब नसीब होती है हमें बिस्तर पर नींद
कभी मैख़ाने में कटी रात, कभी राह में गिरे।

इन आँखों को भूलता ही नहीं वो मंज़र
चाँद-से चेहरे पर घटा से गेसू बिखरे।

कभी-कभार तो गुज़रती होगी तुम पर भी
जो हर दिन, हर रात हम दीवानों पर गुज़रे।

ये तो विर्कइस दिल की ख़ता है वरना
सारी दुनिया गवाह है, कब थे हम बुरे।

दिलबागसिंह विर्क
******  

बुधवार, मई 23, 2018

बड़ी शातिर है दुनिया, मैं नादां ठहरा

हाले-दिल आया न जब मेरे होंठों पर 
उतरा तब यह काग़ज़ पर अल्फ़ाज़ बनकर।

इसकी दुश्वारियों का अब हुआ है एहसास
रौशन करना चाहा था ज़माना, ख़ुद जलकर।  

बड़ी शातिर है दुनिया, मैं नादां ठहरा 
शतरंजी चालों को न कर पाया बेअसर ।

गिरना, टूटना तो कुछ बुरा न था लेकिन 
अपने ही हाथों लुटा है मेरा मुक़द्दर ।

मेरी कमजोरियाँ ही सबब बनी और 
ताक़तवर होता चला गया वो सितमगर। 

वक़्त के साथ बदले ‘विर्क’ अहमियत 
ख़ुदा बन जाता है, तराशा हुआ पत्थर ।

दिलबागसिंह विर्क 
******

बुधवार, मई 16, 2018

वो जाते-जाते दे गया मुझे दर्द इतना

उसका काम वो जानें, ये काम है अपना 
ज़ेहन में बसाना उसे और ख़्यालों में रखना। 

उम्र भर लगा रहा मैं उसको समेटने में 
वो जाते-जाते दे गया मुझे दर्द इतना। 

उसके लिए आँखों ने दिन-रात बहाए अश्क 
मेरे पागल दिल ने, देखा था एक सपना ।

तुम इन्हें हमसफ़र मानने की भूल न करो 
लोगों की फ़ितरत है, दो क़दम साथ चलना। 

तेरी याद दिलाता है तो मैं क्या करूँ 
आसमां पर रात को चाँद का चमकना । 

मेरी तरह तुम्हें भी हैरां कर गया होगा 
विर्क’ मेरा यूँ वक़्त के साँचे में ढलना। 

दिलबागसिंह विर्क 
*****

बुधवार, मई 09, 2018

दौरे-ग़म में जीना आसां तो नहीं

मसीहा बनने की कहाँ थी हैसियत 
मुझे मेरे ग़म से ही मिली न फ़ुर्सत। 

मुहब्बत के दरिया में फैलाए ज़हर 
हमारे दिलों की ये थोड़ी-सी नफ़रत।

मौक़ा मिलते ही उड़ाया है मज़ाक़ 
यूँ तो लोगों ने दी है बहुत इज़्ज़त।

दौरे-ग़म में जीना आसां तो नहीं 
हम जी रहे हैं, क्या ये कम है हिम्मत। 

मेरा ये हुनर तो किसी काम का नहीं 
करता रहता हूँ बस लफ़्ज़ों से कसरत। 

वो जुनूं का दौर था ‘विर्क’, उसका क्या 
अब तो सोचता हूँ, क्यों की थी उल्फ़त ।

दिलबागसिंह विर्क 
*****