मुझे तेरा इंतज़ार था, मुझे तेरा इंतज़ार है
अब ये तू देख, यह पागलपन है या प्यार है।
सुकूं किसे नहीं चाहिए मगर न मिले तो क्या करें
उसका भी मज़ा ले रहे हैं, दिल अगर बेक़रार है।
ज़माने के मौसमों संग नहीं बदलते मौसम मेरे लिए
जब तक तेरे आने की उम्मीद है, तब तक बहार है।
दिल को न जाने क्यों लगे, हर पल तू क़रीब है मेरे
हक़ीक़त में अगर मैं इस पार हूँ, तो तू उस पार है।
ये बात और है कि हम इसे तोड़ पाएँगे या नहीं
टूट तो सकती है, रिवाजों की ये जो दीवार है।
चाहे यह ज़माना आज़माए, चाहे तुम आज़माना
मुहब्बत के हर इम्तिहां के लिए ‘विर्क’ तैयार है।
दिलबागसिंह विर्क
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2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-06-2018) को "लोकतन्त्र में लोग" (चर्चा अंक-3002) (चर्चा अंक 2731) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उम्दा ।
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