बुधवार, जून 27, 2018

मुहब्बत तो बस मेरा मज़हब है

तेरे आने का इंतज़ार कब है 
मुहब्बत तो बस मेरा मज़हब है। 

बहते अश्कों को छुपाना कैसा 
छलकता है वही, जो लबालब है। 

कुछ तो मुझे बेवफ़ा न होना था 
कुछ याद का पहरा रोज़ो-शब है। 

कुछ-न-कुछ चलता ही रहे ज़ेहन में 
सोच का सफ़र कितना बेमतलब है ।

वस्लो-हिज्र ज़िंदगी के पहलू दो
ग़म में डूबे रहना बेसबब है ।

मंज़िल का ‘विर्क’ नामो-निशां नहीं 
ये मुहब्बत का सफ़र भी ग़ज़ब है। 

दिलबागसिंह विर्क 
*****

1 टिप्पणी:

रोहित शर्मा ने कहा…

वाह वाह क्या कहने।

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