मुहब्बत में कब आराम पाया
दिल का दर्द सुबहो-शाम पाया।
जितना ज्यादा सोचा है मैंने
ख़ुद को उतना ही नाकाम पाया।
मैं कौन हूँ तुम्हें भुलाने वाला
हर धड़कन पर तेरा नाम पाया।
मेरी वफ़ा ज़ाया तो नहीं गई
अश्कों-आहों का इनाम पाया।
क्या उम्मीद रखूँ, तेरे कूचों में
इश्क़ को बहुत बदनाम पाया।
हुनर कम, लिखना ख़ता ज्यादा लगे
‘विर्क’ मैंने ये कैसा काम पाया।
दिलबागसिंह विर्क
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13 टिप्पणियां:
नमस्ते,
आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 10 जनवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1273 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
वाह...बहुत सुन्दर
बहुत खूब.........
वाह !बहुत ख़ूब
वाह
बहुत खूब...... सादर नमन आप को
आये हाय
सुंदर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (11-01-2019) को "विश्व हिन्दी दिवस" (चर्चा अंक-3213) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी वफ़ा ज़ाया तो नहीं गई
अश्कों-आहों का इनाम पाया।
बहुत ही सुन्दर...लाजवाब...
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अदालत में फिर अटका श्रीराम जन्मभूमि मामला : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
मुहब्बत में कब आराम पाया
दिल का दर्द सुबहो-शाम पाया।
जितना ज्यादा सोचा है मैंने
ख़ुद को उतना ही नाकाम पाया।
आदरणीय विर्क जी, बेहतरीन शायरी को पढकर मन बाग-बाग हो गया। शुभकामनाएं व शुभ प्रभात ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" कल शाम सोमवार 07 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अश्कों-आहों का इनाम पाया।
लाजवाब प्रस्तुति।
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