अब क्या कहेंगे आप, इस आदत को
ग़लतियाँ ख़ुद की,
कोसा क़िस्मत को।
तमाम चीजें बेलज़्ज़त
हो गई
पाया जिसने इश्क़ की
लज़्ज़त को।
ये एक दिन घर
तुम्हारा जलाएगी
दोस्तो, न हवा देना इस नफ़रत को।
अपने वुजूद से
फैलाएँ रौशनी
दाद देना जुगनुओं की
हिम्मत को।
पत्थर पिघलाने की
ताक़त है इसमें
आज़माना ‘विर्क’ कभी मुहब्बत को।
दिलबागसिंह विर्क
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7 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-03-2019) को "पापी पाकिस्तान" (चर्चा अंक-3262)) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह !
दाद दी जुगनुओं को !
और आपको !
वाह ! बहुत ख़ूब
सादर
ये एक दिन घर तुम्हारा जलाएगी
दोस्तो, न हवा देना इस नफ़रत को।
बहुत लाजवाब गजल...
वाह!!!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" कल शाम सोमवार 07 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह बहुत खूब बेहतरीन बेमिसाल।
पत्थर पिघलाने की ताक़त है इसमें
आज़माना ‘विर्क’ कभी मुहब्बत को।
वाह बहुत खूब विर्क जी 🙏
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