उनको भी पता है, मुझको भी ख़बर है
मुहब्बत क्या है, बस एक दर्दे-जिगर है।
ये नज़र मिली थी उनसे मुद्दतों पहले
आज तक उस नशे का मुझ पर असर है।
दिल का चैनो-सकूं लूटकर ले गया जो
उसको हर जगह ढूँढ़ती मेरी नज़र है।
वो मन्दिर है या मस्जिद, सोचा नहीं कभी
सबमें है ख़ुदा, ये सोचकर झुकाया सर है।
क्यों बेचैन हो, किसलिए इतना परेशां
तुम लूटो मज़ा, ये ज़िंदगी एक सफ़र है।
धड़के तो सही ‘विर्क’, ये मचले तो सही
दिल है तो दिल बने, क्यों बनता पत्थर है।
दिलबागसिंह विर्क
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