बुधवार, मार्च 11, 2020

ज़िंदगी

जीवन 

उथले पानी में 
बीता है 
जीवन सारा 
और अक्सर 
हमने बात की है 
गोताखोरी की 

****

ज़िंदगी – 1 

पक्षियों का कलरव 
भँवरों का गुंजार 
फूलों का खिलना 
हवा का चलना 
है ज़िंदगी
यह अर्थ नहीं रखती 
महज काटने में 
इसे तो जीया जाता है 
चहककर 
महककर 

****

ज़िंदगी – 2

ज़िंदगी की परतों के 
भीतर ही कहीं 
छुपी रहती ज़िंदगी 
जैसे छुपा हो 
हारिल कोई 
हरे पत्तों के बीच 

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7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना गुरूवार १२ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. जिंदगी- सच जो क़रीब से देखा गया।
    जिंदगी1- जिंदगी को जियो खिल के, चहक के।
    जिंदगी2- हमारे हर पल में बिखरी पड़ी है जीने की आशा।
    सुंदर रचना।
    नई रचना- सर्वोपरि?

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  3. वाह!!!
    बहुत सुन्दर सार्थक...

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  4. वाह , दिलबाग जी ! सुंदर अभिव्यक्ति !!!!!

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यहाँ तक पहुंचने के लिए आभार | आपके शब्द मेरे लिए बहुमूल्य हैं | - दिलबाग विर्क