बुधवार, दिसंबर 29, 2010

षटपदीय छंद - 1

                                                   ( व्यंग्य
         
       आदर्शवादी होकर  ,  बने सिर्फ नाम के 
       चमचागिरी करके तुम , हो जाओ काम के .
       हो जाओ काम के , होगा तुम्हारा नाम 
       करना चाहे उल्टे  ,  सीधे पड़ेंगे काम .
       कामयाब हैं वही  ,  जो समझौतावादी 
       कहता ' विर्क ' सबसे , क्यों हो आदर्शवादी . 

                    * * * * *                                    

रविवार, दिसंबर 26, 2010

लघु कथा -1


   जानवर  

अनजान गली में से गुजरते समय एक कुत्ते को बैठे देखकर हमारे कदम ठिठके  । थोडा संभलकर पास से निकलने की सोची  । जानवर है , क्या भरोसा कब टांग पकड़ ले  ।  हम दोनों ने यही सोचा ।
" आदमी भी तो एक जानवर है , सभ्य जानवर  ।"-मैंने अपने दोस्त से कहा  ।
" हाँ , जानवर तो है ,लेकिन सभ्य नहीं , बल्कि सभ्य होने के बाबजूद भी ।'- मेरे मित्र ने दार्शनिक अंदाज़ से कहा  ।
" वो कैसे ?"-मैंने हैरानी से पूछा  ।
" आदमी सभ्य है , इसमें कोई शक नहीं , लेकिन वह जानवर भी है  । जानवर की तरह वह कभी भी हमला कर सकता है आपके सामान पर , आपकी जान पर व आपकी इज्जत पर ... तभी तो घर से बाहर आकर हम अनजान आदमियों से ऐसे ही सचेत रहते हैं जैसे हम अभी इस कुत्ते के पास से गुजरते समय थे  ।"-उसने बात स्पष्ट की  ।
               उसकी बात पर जब मैंने गौर किया तो समाचार पत्रों , टी.वी.चैनलों पर दिखाए जाने वाले दुष्कर्म , लूट-मार भरे समाचार मेरी आँखों के सामने घूम गए । मुझे भी यकीन आ गया उसकी बात पर  । वास्तव में आदमी जानवर ही तो है , सभ्य होने के बाबजूद भी  ।
दिलबाग विर्क
                       * * * * *

शनिवार, दिसंबर 25, 2010

अग़ज़ल - 4

बहुत हो गई, अब छोडो यारो ये तकरार बे-बात की 
जिंदगी जन्नत बने, इसके लिए निभानी होगी दोस्ती । 

ये वो शै है, जो हर पल आमादा है लुप्त होने को 
जब मिले, जहाँ मिले, जी भरकर समेट लेना ख़ुशी । 

प्यार के सब्ज़ खेत भला लहलहाएंगे तो कैसे, जब तक 
वफा की घटा, दिलों की जरखेज ज़मीं पर नहीं बरसती । 

वहशियत नहीं मासूमियत हो, नफ़रत नहीं मुहब्बत हो 
ऐसे ख्वाबों को पूरा करने में तुम लगा दो जिंदगी । 

माना दौर है तूफानों का, यहाँ नफ़रतों की आग है 
फिर भी हिम्मत हारना, है तुम्हारी सबसे बड़ी बुजदिली । 

न तो नफ़रत की बात कर 'विर्क', न उल्फत से गिला कर 
किस्मत तेरी रंग लाएगी, तू खुद को बदल तो सही । 

दिलबाग विर्क 
 * * * * *

बुधवार, दिसंबर 22, 2010

अग़ज़ल - 3

          
सुलगती राख को कभी छुआ नहीं करते              
आग के शरारे किसी के हुआ नहीं करते |

मुहब्बत में मैंने तो एक सबक पाया है 
वक़्त और आदमी कभी वफ़ा नहीं करते |

ये बात और है कि खुदा को कबूल नहीं हैं
         वरना कौन कहता है कि हम दुआ नहीं करते |

ज़ालिम किस्मत काट लेती है पंख जिनके  
वो परिंदे परवाज़ के लिए उड़ा नहीं करते |

दिल के साथ दिमाग की भी सुन लिया करो 
जज्बातों  की  रौ  में  यूँ  बहा  नहीं  करते |

तुम दर्द छुपाने की भले करो लाख कोशिश
मगर ये आंसू आँखों में छुपा नहीं करते |

काट रहे हैं हम ' विर्क ' वक्त जैसे-तैसे 
ये मत पूछो , क्या करते हैं , क्या नहीं करते |

दिलबाग विर्क 
          *******                

मंगलवार, दिसंबर 21, 2010

अग़ज़ल - 2

                दुनिया की रस्मों से अनजान
                मैं  हूँ  पागल  ,  मैं  हूँ  नादान ।

                बंदिशें  इस  कद्र  भारी  पड़ी 
                दिल में दफन हो गए सब अरमान ।

                गम कब तक रहेंगे पास मेरे  
                क्या  कहूँ , मैं  तो  हूँ  मेज़बान ।

                बे'मानी  हो  चुके  हैं  अब  तो 
                मेरे  आँसू ,  मेरी  मुस्कान  ।

                कर्जदार हूँ  , बकाया हैं मुझ पर 
                कुछ इसके , कुछ उसके अहसान ।

                हिम्मत, किस्मत 'विर्क' सब चाहिए 
                 जिंदगी  है  एक  बड़ा  इम्तिहान  ।

दिलबाग विर्क
                           * * * * *

रविवार, दिसंबर 19, 2010

अग़ज़ल - 1

प्यार-मुहब्बत के फरिश्तों का हमजुबां होना 
सब गुनाहों से बुरा है दिल में अरमां होना |

अहसास की आँखों से देखी हैं रुस्वाइयाँ 
महज़ इत्तफाक नहीं दिल का परेशां होना |

नजदीकियां भी बुरी होती हैं दूरियों की तरह 
जरूरी है कुछ फासिलों का दरम्यां होना |

गर गरूर है उन्हें महलों का तो रहने दो 
मेरे लिए काफी है सिर पे आसमां होना |

न जाने क्यों खुदा होना चाहते हैं लोग
काफी होता है एक इंसां का इंसां होना |

जीना मकसद है जिंदगी का 'विर्क' जीता रह 
क्यों चाहता है अपने कदमों के निशां होना |

दिलबाग विर्क 
* * * * *
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