बहुत हो गई, अब छोडो यारो ये तकरार बे-बात की
जिंदगी जन्नत बने, इसके लिए निभानी होगी दोस्ती ।
ये वो शै है, जो हर पल आमादा है लुप्त होने को
जब मिले, जहाँ मिले, जी भरकर समेट लेना ख़ुशी ।
प्यार के सब्ज़ खेत भला लहलहाएंगे तो कैसे, जब तक
वफा की घटा, दिलों की जरखेज ज़मीं पर नहीं बरसती ।
वहशियत नहीं मासूमियत हो, नफ़रत नहीं मुहब्बत हो
ऐसे ख्वाबों को पूरा करने में तुम लगा दो जिंदगी ।
माना दौर है तूफानों का, यहाँ नफ़रतों की आग है
फिर भी हिम्मत हारना, है तुम्हारी सबसे बड़ी बुजदिली ।
न तो नफ़रत की बात कर 'विर्क', न उल्फत से गिला कर
किस्मत तेरी रंग लाएगी, तू खुद को बदल तो सही ।
दिलबाग विर्क
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1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर गज़ल...बधाई आपको.
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