बेटी न कहो मुझे
मैं आपका बेटा हूँ पापा ।
यह जिद्द
बिटिया करती है अक्सर
पता नहीं
क्यों और कैसे
लड़का होने की चाह
घर कर गई है
उसके मन में ।
वैसे मान सकता हूँ मैं
बेटा - बेटी एक समान होते हैं
बेटी भी बेटा ही होती है
मगर नहीं मान पाता
बेटी को बेटा
कैसे मानूं ?
क्यों मानूं ?
बेटी को बेटा
बेटा होना कोई महानता तो नहीं
बेटी होना कोई गुनाह तो नहीं
बेटी का बेटी होना ही
क्या काफी नहीं ?
क्यों पहनाऊँ मैं उसे
बेटे का आवरण ?
नासमझ
नन्हीं बिटिया को
जिद्द के चलते
भले ही मैं
कहता हूँ बेटा उसे
मगर मेरा अंतर्मन
मानता है उसे
सिर्फ और सिर्फ
प्यारी-सी बिटिया .....
दिलबाग विर्क
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11 टिप्पणियां:
बहुत ही बढ़िया रचना.
मेरी भी एक बेटी है.आप के जज़्बात समझ सकता हूँ मैं.
गर तेरा बचपन नहीं होता.
घर मेरा गुलशन नहीं होता.
सलाम
इतनी सुन्दर रचना पहले कभी नहीं पढ़ी । आँख में आंसू आ गए । बेटी हूँ न , और हमेशा अपने पापा की लाडली भी , इसलिए समझ सकती हूँ आपकी भावनाओं कों इस प्यारी सी बिटिया के लिए। आपकी रचना के माध्यम से आपकी भावनाओं कों समझा। आपके लिए मन में बहुत सम्मान है ।
बेटी कों बेटी ही समझिये , क्यूंकि बेटा और बेटी एक समान हैं। इश्वर की कृपा से घर में नन्ही परी आई है तो उस नाज़ुक सी परी कों उसका पूरा सम्मान मिलना ही चाहिए।
आपकी भावनाओं कों नमन ।
भले ही मैं
कहता हूँ बेटा उसे
मगर मेरा अंतर्मन
मानता है उसे
सिर्फ और सिर्फ
प्यारी-सी बिटिया .....
मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है। बधाई।
बहुत सुन्दर, दिल जित लिया जी आपने. बेटा बेटी सब एक सामान होते है.
बहुत सुन्दर,बेटा बेटी सब एक सामान होते है|
आपकी भावनाओं कों नमन ।
बहुत सुन्दरता से आपने अपने विचार रखे।
सच जिस दिन सभी अह मान ले तो शायद देश की स्थिति मे सौ गुना सुधार दिखने लगेगा
भावपूर्ण सुन्दर कविता..
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार.
Nice post.
मौत की आग़ोश में जब थक के सो जाती है माँ
तब कहीं जाकर ‘रज़ा‘ थोड़ा सुकूं पाती है माँ
रूह के रिश्तों की गहराईयाँ तो देखिए
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ
सच है बेटी बेटे से कई कई कदम आगे है ... लाजवाब तरीके से मन के भाव समेटे हैं ...
बेटी होना कोई गुनाह तो नहीं बिल्कुल सही कहा आपने दिलबाग जी.बहुत खूब
बहुत बढ़िया
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