{हरियाणा साहित्य अकादमी हर वर्ष अनुदान हेतु पांडुलिपियाँ आमंत्रित करती है , वर्ष 2007 - 2008 के लिए मैंने भी पाण्डुलिपि भेजी थी . सौभाग्य से मेरे द्वारा भेजी गई पाण्डुलिपि को चुन लिया गया . बस उसी कारण मैं अपनी विचारप्रधान रचनाओं को कविता कहने का साहस जुटा पाया . इस पुस्तक में कुल 28 कविताएँ हैं ,जिनमें दो लम्बी कविताएँ भी है . वैसे तो निर्णय के क्षण लेबल से इस पुस्तक की कविताएँ इस ब्लॉग पर प्रकाशित कर रहा हूँ , पर आज से लम्बी कविता को तीन या चार किश्तों में प्रकाशित करूंगा . आशा है आप अपने मत से परिचित करवाएंगे .}
महत्वाकांक्षा
क्या न्याय का अर्थ है -
एक को मुंह मांगी वस्तु का मिल जाना
और दूसरे से
बिना किसी कारण ही
उसकी प्रिय वस्तु छीन लेना ?
कुछ ऐसा ही हुआ था
जानकी के साथ
न्यायप्रिय राजा राम की पत्नी के साथ
और इसे
मिलती रही है
न्याय की संज्ञा
इसलिए
शायद यही न्याय होगा .
लेकिन यह न्याय किस को मिला
उस साधारण जन को
जिसने पत्नी से झगड़ते समय
लांछन लगाया था सीता पर ;
उस सीता पर
जो निर्दोष सिद्ध कर दी गई थी
जो निर्दोष सिद्ध कर दी गई थी
अग्नि द्वारा ;
या फिर सीता को
जिसे देश निकाला मिला अकारण ही .
शायद यह न्याय नहीं
महत्वाकांक्षा थी राम की
न्यायप्रिय राजा के रूप में
विख्यात होने की ,
अन्यथा
कोई कारण नहीं था
सीता को देश निकाला देने का .
राम ने
सिद्ध करना चाहा था
वह न्याय के लिए
छोड़ सकता है
अपनी परमप्रिय पत्नी तक को .
लेकिन क्या राम न्याय कर पाया ?
{ क्रमश:}
* * * * *
15 टिप्पणियां:
शायद यह न्याय नहीं
महत्वाकांक्षा थी राम की
न्यायप्रिय राजा के रूप में
विख्यात होने की ,
अन्यथा
कोई कारण नहीं था
सीता को देश निकाला देने का .
बहुत सटीक तथ्य उठाया है आपने.
इस महत्वपूर्ण कविता की अगली कड़ी की प्रतीक्षा है.
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा आपकी पाण्डुलिपि को चुना जाना हर्ष का विषय है. बधाई.
सारगर्भित रचना , आभार
बहुत सुंदर ,अगली कड़ी की प्रतीक्षा है.
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सार्थक प्रश्न उठाया है आपने रचना में..बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...इंतज़ार है अगली कड़ी का..आभार
सारगर्भित रचना , आभार....
बहुत तार्किक बात कही है ..आगे की कड़ी का इंतज़ार है
वैसे यदि एक साथ ही पुरी रचना पोस्ट करें तो ज्यादा आनन्द आएगा पढने में .
आपकी पोस्ट की हलचल आज यहाँ है-
नयी-पुरानी हलचल
बिलकुल सही तर्क दिया है ...!!अच्छा लगा आपकी रचना पढना ..!!
नारी सम्मान और न्याय के पहलुओं को परिभाषित करती सुन्दर रचना ....
राम ने राज धर्म का पालन करते हुए प्रजा के प्रति अपनी जवाबदेही को तुष्ट किया किन्तु सीता के साथ न्याय तो नहीं ही हुआ |
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा आपकी पाण्डुलिपि को चुना जाना ....पहले आप बधाई स्वीकार करे ...बहुत सार्थक प्रश्न उठाया है आपने रचना में..बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति
bahut hi achchhi lagi ye nazm...sateek sawal..sahi nishkarsh...badhai
शायद यह न्याय नहीं
महत्वाकांक्षा थी राम की
न्यायप्रिय राजा के रूप में
विख्यात होने की ,
अन्यथा
कोई कारण नहीं था
सीता को देश निकाला देने का .
राम ने
सिद्ध करना चाहा था
वह न्याय के लिए
छोड़ सकता है
आपका सवाल और उसकी व्यख्या बहुत अच्छी और संयत है पर- जब राम जैसे सुधी, विचारवान, और प्रजापालक सम्राट को नहीं समझा पाया तत्कालीन समाज तो आज के दीन-हीन समाज से इस प्रकार के प्रश्नों को समझ पाने की अपेक्षा करना कहाँ तक सार्थक होगा राम जाने...
वैसे आपका प्रयास अत्यन्त सार्थक रहा...बधाई
शायद यह न्याय नहीं
महत्वाकांक्षा थी राम की
न्यायप्रिय राजा के रूप में
विख्यात होने की ,
अन्यथा
कोई कारण नहीं था
सीता को देश निकाला देने का .bahut achacha likha hai aapne.padhker achcha lagaa.badhaai.
please visit my blog.thanks.
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