आदमी कितना मजबूर था, आदमी कितना मजबूर है
कल पहुंच से चाँद दूर था, आज आदमियत दूर है |
मेरे गम के पीछे सिर्फ उनकी मतलबपरस्ती नहीं
मैं भी थोडा मतलबपरस्त था, ये मेरा कसूर है |
अपनी गलतियों को छुपाना आसां हो गया है इससे
तभी तो आजकल यहाँ , बेवफा शब्द बड़ा मशहूर है |
अगर बुरे हैं हालात तो, तंग है सोच भी लोगों की
इन दोनों ही चीज़ों का, एक-दूसरे पर असर जरूर है |
मुँह नोच लिया करते हैं लोग सच बोलने वालों का
झूठ हो चुका है हावी, सच्चाई किसे मंजूर है |
कोई सुनता ही नहीं यहाँ दर्द भरी पुकार किसी की
दिल हो चुके हैं पत्थर 'विर्क', तभी तो दुनिया बेनूर है |
दिलबाग विर्क
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11 टिप्पणियां:
अपनी गलतियों को छुपाना आसां हो गया है इससे
तभी तो आजकल यहाँ , बेवफा शब्द बड़ा मशहूर है .
क्या बात है...बहुत खूब...लाजवाब....
कोई सुनता ही नहीं यहाँ दर्द भरी पुकार किसी की
दिल हो चुके हैं पत्थर 'विर्क', तभी तो दुनिया बेनूर है .
एक दम सच कहा आपने ....पत्थर के दिल हो चुके है अब यहाँ
और मतलब की है ये दुनिया ....हर कोई किसी ना किसी को इस्तेमाल करने में लगा है
सच के रिश्ते खो से गए है
बहुत शानदार ग़ज़ लिखी है आपने!
फिर यह अग़ज़ल कैसे हो गई!
बहुत शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने!
फिर यह अग़जल कैसे हो गई!
आदरणीय शास्त्री जी
सादर प्रणाम
मैं सिर्फ काफिया और रदीफ़ का ही ध्यान रखता हूँ ,बहर को निभा पाना मेरे बूते की बात नहीं , इसलिए ऐसी रचनाओं को अगज़ल कहना शुरू कर दिया ताकि ग़ज़ल के समीक्षकों को दिक्कत न हो .
आपको मेरी रचना ग़ज़ल लगी यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है
बहुत शानदार ||
आदमी कितना मजबूर था, आदमी कितना मजबूर है
कल पहुंच से चाँद दूर था , आज आदमियत दूर है .
और दूर होता ही जा रहा है...
बहुत बढ़िया...
अच्छी ग़ज़ल, बधाईयाँ !
अगर बुरे हैं हालात तो , तंग है सोच भी लोगों की
इन दोनों ही चीज़ों का, एक-दूसरे पर असर जरूर है .
खुबसूरत अगज़ल
अपनी गलतियों को छुपाना आसां हो गया है इससे
तभी तो आजकल यहाँ , बेवफा शब्द बड़ा मशहूर है .
Khoob kaha..... Bahut umda gazal...
मुंह नोच लिया करते हैं लोग सच बोलने वालों का
झूठ हो चुका है हावी , सच्चाई किसे मंजूर है .
वाह,कडुवा सच लिखा है आपने.
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