गतांक से आगे
प्रश्न उठता है
क्यों किया राम ने
ऐसा अत्याचार
अपनी पत्नी के साथ ?
उस पत्नी के साथ
जिसने स्वेच्छा से
वल्कल धारण कर
चौदह वर्ष का वनवास काटा था ,
जिसने पति के कहने मात्र पर
अग्नि परीक्षा दी
बिना कोई किन्तु-परन्तु किए
तो इसका उत्तर
सिर्फ यही मिलता है
कि राम भी एक पति था
ऐसा पति
जो अधिकार समझता है अपना
पत्नी पर अत्याचार करने को .
राम का यह अत्याचार
पहला नहीं
अंतिम था .
पहले भी उसने
अत्याचार तो किया ही था
सीता की अग्नि परीक्षा लेकर .
सीता की अग्नि परीक्षा लेने वाला
वो न्यायप्रिय शासक
क्यों भूल गया था कि
विवाह का बंधन
विश्वास की नींव पर खड़ा है
शक की बुनियाद पर नहीं .
और सीता की अग्नि परीक्षा लेने से पहले
क्यों यह नहीं सोचा
उस शक्की सम्राट ने
कि यदि वह देख सकता है सीता को
शक की दृष्टि से
तो क्यों नहीं देख सकती
सीता भी उसे ऐसे ही ?
क्यों उसने सीता से यह नहीं कहा
पहले मैं अग्नि परीक्षा दूंगा
बाद में तुम देना ?
इसका कारण भी
शायद यही मिलेगा
कि राम एक पुरुष था
और सीता एक स्त्री
इसलिए अत्याचार सहना
उसकी नियति बन गया
और उसने चुपचाप सहा भी
इस अत्याचार को .
चुपचाप इसलिए
क्योंकि
हर स्त्री की तरह
वह पति को सिर्फ पति नहीं
परमेश्वर भी मानती थी .
यह बात और है कि
उसका पति
परमेश्वर बाद में
हर पति की तरह
पुरुष पहले था .
एक महत्वाकांक्षी पुरुष ,
और उसकी महत्वाकांक्षा ने
न्यायप्रिय सम्राट के रूप में
विख्यात होने की महत्वाकांक्षा ने
बलिबेदी पर चढ़ा दिया
एक पति भक्तिन अबला को
सीता को .
{ समाप्त }
* * * * *
16 टिप्पणियां:
सटीक !समकालीन और अर्वाचीन एक साथ.
स तर्क और मार्मिक विश्लेषण.....
भाव प्रवण रचना ..
यथार्थपरक रचना.... हार्दिक बधाई।
भाव पूर्ण रचना |बधाई
आशा
शब्द नहीं कुछ कहने को .... ऐसा लगता है जैसे आज भी हर नारी सीता और हर पुरुष राम है
अब भी कहाँ खत्म हुई है किसी भी सीता की अग्नि परीक्षा ...आपकी कविता ने एक नई सोच जो जन्म दिया
क्या कभी इस अन्याय का अंत होगा ...
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शब्द नहीं कुछ कहने को .... ऐसा लगता है जैसे आज भी हर नारी सीता और हर पुरुष राम है
अब भी कहाँ खत्म हुई है किसी भी सीता की अग्नि परीक्षा ...आपकी कविता ने एक नई सोच जो जन्म दिया
क्या कभी इस अन्याय का अंत होगा ...
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सारी कडियां पढ ली .. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है !!
विख्यात होने की महत्वाकांक्षा ने
बलिबेदी पर चढ़ा दिया
एक पति भक्तिन अबला को
sachmuch man ko jhakjhor gayi ye nazm...
bahut sateek vicharon ko abhivyakt kiya hai .aabhar
ईश्वर या परमेश्वर भी तो एक पुरुष ही है ।
पुरुष एवेदं सर्वं, यदभूतं यच्च भव्यम् ।
हर स्त्री की तरह
वह पति को सिर्फ पति नहीं
परमेश्वर भी मानती थी .
यह बात और है कि
उसका पति
परमेश्वर बाद में
भाव पूर्ण ||
हर पति की तरह
पुरुष पहले था .
-- क्या राम के कष्ट को कोइ समझेगा... हल्ला बोल ..ब्लॉग पर 'सीता का निर्वासन' कविता पढ़िए..... कुछ वाक्यांश हैं...
"अहल्या व शबरी-
सारे समाज की आशंकाएं हैं ;
जबकि, सीता राम की व्यक्तिगत शंका है |
व्यक्ति से समाज बड़ा होता है ,
इसीलिये तो सीता का निर्वासन होता है |
स्वयं पुरुष का निर्वासन-
कर्तव्य विमुखता व कायरता कहलाता है ;
अतः कायर की पत्नी -
कहलाने की अपेक्षा ,
सीता को निर्वासन ही भाता है ||"
रचना के चारों भीग बहुत अच्छे रहे!
बहुत सार्थक लेखन है आपका!
भारतीय पति की मानसिकता
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