हिंदी बनाम अंग्रेजी
होता है उद्देश्य
हर भाषा का
यही उद्देश्य है
हिंदी और अंग्रेजी का .
ये दोनों भाषाएँ
भारत में भी प्रमुख साधन हैं
विचार विनिमय का
लेकिन
बार-बार प्रश्न उठता है
अंग्रेजी भारत में क्यों ?
क्या यह प्रश्न सिर्फ इसलिए
कि अंग्रेजी अंग्रेजों की भाषा है
और अंग्रेजों से
मुक्ति पाने के बाद
अब हमें
मुक्ति पा लेनी चाहिए
अंग्रेजी से भी .
अगर यही एकमात्र कारण है
अंग्रेजी के विरोध का
तो यह कारण कम
संकीर्णता अधिक है
भाषा किसी की बपौती नहीं होती
भाषा हर उस जन की है
जो सीखता है उसे
इसलिए
अंग्रेजी भारतीयों की भी है
क्योंकि भारतीयों ने
सीखा है इसे
अपनाया है इसे .
हमें अब इसे
आत्मसात करना ही होगा
भारतीय भाषाओं में
फिर इसको नकारने से
लाभ कम होगा
हानि अधिक होगी .
हानि -
अंतर्राष्ट्रीय सम्पर्क में कमी की .
हानि -
भारत में
अंग्रेजी समर्थकों के विरोध की
और बिन मतलब के विरोध से
बिन मतलब के टकराव से
कुछ हासिल नहीं होता
सिवाय तनाव के .
हमें
हिंदी बनाम अंग्रेजी
के मुद्दे की बजाए
समर्थन करना होगा
हिंदी का .
हमें प्रश्न उठाना होगा
राष्ट्रभाषा होकर भी
हिंदी अपने अधिकार से
वंचित क्यों है ?
हमें प्रयास करना होगा
हिंदी के प्रचार-प्रसार का .
हमें जन-जन में
जगानी होगी
राष्ट्रभाषा के प्रति
कर्तव्यबोध की भावना .
हमें बताना होगा सबको
हिंदी वो फूल है
जो तैर सकता है
क्षेत्रीय भाषाओं
और अंग्रेजी से
लबालब भरे बर्तन पर
आसानी से .
* * * * *
हरियाणा साहित्य अकादमी की मासिक पत्रिका हरिगंधा में सितम्बर 2010 में प्रकाशित
* * * * *
4 टिप्पणियां:
भारत में भाषाई लड़ाई हिंदी के पक्ष में हो तो अच्छा है. अंग्रेज़ी विरोध का समय अब जा चुका है.
सार्थक बात कही है ..विरोध आवश्यक नहीं है ... ज़रूरत है हिंदी को अपनाने की ..
हिंदी की जय बोल |
मन की गांठे खोल ||
विश्व-हाट में शीघ्र-
बाजे बम-बम ढोल |
सरस-सरलतम-मधुरिम
जैसे चाहे तोल |
जो भी सीखे हिंदी-
घूमे वो भू-गोल |
उन्नति गर चाहे बन्दा-
ले जाये बिन मोल ||
हिंदी की जय बोल |
हिंदी की जय बोल --
हिंदी वो फूल है, जो तैर सकता है
क्षेत्रीय भाषाओं और अंग्रेजी से
लबालब भरे बर्तन पर आसानी से .
बहुत सुन्दर कहा है आपने.
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