औका़त
ऐ पत्थर
क्यों भूल रहा है औका़त अपनी
याद कर
मेरे तराशने पर ही
तू खुदा बना है.
कभी तेरा ठिकाना था
जमाने की ठोकरें
मेरी बदौलत ही
तू बादशाह बना है.
कल बनाई थी मैंने
तकदीर तेरी
आज तू मेरी तकदीर बना रहा है.
मुझे भुलाकर
अपनी हसरतों के
महल सजा रहा है.
वैसे मुझे
कोई गिला नहीं
तेरे इन कारनामों से
आखिर
यह सब तो होना ही था
क्योंकि कल कल था
आज आज है
आज वक्त तेरी और है
इसीलिए तेरा राज है
मैं बना हूँ भिखारी
तू सरताज है.
मगर याद रखना
आज के बाद फिर कल आएगा
उस दिन तक शायद मैं न रहूँ
लेकिन
मुझ-सा ही कोई और होगा
जो तेरी खुदाई को ठुकराएगा
तुझे फिर से पत्थर बनाएगा
उसका अपना खुदा होगा
तू गलियों में पड़ा होगा
बिलकुल मेरी तरह......
* * * * *
6 टिप्पणियां:
आज वक्त तेरी और है इसीलिए तेरा राज है
मैं बना हूँ भिखारी तू सिरताज है.
यथार्थ का चित्र प्रस्तुत करती सुंदर रचना. बधाई.
वाह! विर्क जी, अच्छा चित्रण है...
सादर...
बहुत ही सुंदर रचना
वाह...!
बेहतरीन सृजन सर।
सुन्दर प्रस्तुति
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