रविवार, सितंबर 04, 2011

पतन

                 

                 निस्सन्देह 
                 व्यवसाय हो चुकी है शिक्षा 
                 नहीं रही है यह मिशन 
                 नहीं रही है गुरु में गुरुता
                 लेकिन 
                 शिष्यों में भी 
                 कहाँ रही है
                 पहले-सी शिष्यता 
                 अंगूठा कटवाना तो दूर 
                 अंगूठा दिखाते हैं
                 आज के शिष्य 
                 यही पतन है 
                 और इस पतन की बाढ़ में 
                 बह रहे हैं सभी 
                 शिक्षा भी 
                 समाज भी
                 संस्कृति भी .

                  * * * * *               

17 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

शिक्षा अब व्यवसाय बन चुकी है ..नफा नुक्सान देखा जाता है आज कल .. सटीक और सार्थक रचना

Bharat Bhushan ने कहा…

जिन गुरुओं ने बिना शिक्षा दिए ही गुरु दक्षिणा में अंगूठा माँगा था वे अब अपनी नाक कटवाने के लिए भी तैयार रहे.

Mahesh Barmate "Maahi" ने कहा…

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय...
जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय...

दिलबाग जी...
हम लाख बार भी कोश लें शिक्षा व्यवस्था को, शिक्षक को या शिष्य को फिर भी कोई सुधरने नहीं वाला... पहले खुद को जाने, फिर दूसरे की गलती बताएं...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

दिलबाग जी यह पीड़ा हर बुद्धिजीवी के मन में है. इस पर एक आंदोलन होना चाहिये.मेरी पोस्ट पर आयें और देखें यही पीड़ा मेरे मन में भी है.मैंने अपनी जनहित में जारी की है.हम कुछ तो करें.यह भी एक ऋण है.अपने जीते जी कैसे उतारें ?

Sunil Kumar ने कहा…

अंगूठा दिखाते हैं
आज के शिष्य
शिक्षक दिवस पर शुभकामनायें........

Kunwar Kusumesh ने कहा…

बात तो सही लिखी आपने पर हमें हर हाल में सकारात्मक होना है अतः:"शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाई".

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

शिक्षा के क्षेत्र में इतनी धांधली क्यूँ है आज ?????

संजय भास्‍कर ने कहा…

दिलबाग जी...
शिक्षक दिवस पर शुभकामनायें......!

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

समाज का आइना दिखाती रचना।

------
नमक इश्‍क का हो या..
पैसे बरसाने वाला भूत...

ZEAL ने कहा…

अंगूठा कटवाना तो दूर
अंगूठा दिखाते हैं
आज के शिष्य ...

A sad truth ...

.

Maheshwari kaneri ने कहा…

आज शिक्षा का क्षेत्र भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं......

Sadhana Vaid ने कहा…

शिक्षा के क्षेत्र में आने वाले नैतिक मूल्यों के ह्रास की ओर आपने बखूबी संकेत किया है ! ना अब पहले से समर्पित शिक्षक दिखाई देते हैं ना शिष्य ! सुन्दर एवं सार्थक रचना !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (02-09-2020) को  "श्राद्ध पक्ष में कीजिए, विधि-विधान से काज"   (चर्चा अंक 3812)   पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
-- 
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
--

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सटीक।

Marmagya - know the inner self ने कहा…

आ दिलबाग सिंह विर्क जी, नमस्ते! बहुत सही लिखा है आपने। आज की शिक्षा व्यवसाय बन गयी है। इसे बदलना होगा। इसजे सर्वसुलभ होना होगा।
मैंने आपका ब्लॉग अपने रीडिंग लिस्ट में डाल दिया है। कृपया मेरे ब्लॉग "marmagyanet.blogspot.com" अवश्य विजिट करें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं। सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ

Sudha Devrani ने कहा…

अंगूठा कटवाना तो दूर
अंगूठा दिखाते हैं
आज के शिष्य ...
बहुत सटीक ...
लाजवाब सृजन

मन की वीणा ने कहा…

कम शब्दों में यथार्थ और सार्थक सृजन।

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