कोई भी तो नहीं होता इतना करीब दोस्तो
खुद ही उठानी पडती है अपनी सलीब दोस्तो ।
दोस्त बनाओ मगर दोस्ती पे न छोडो सब कुछ
क्या भरोसा कब बन जाए कोई रकीब दोस्तो ।
हमसफर के नाम पर गर कोई दगाबाज़ निकले
शिकवा छोडो, समझो उसे अपना नसीब दोस्तो ।
कब गम मिले, कब ख़ुशी, कुछ मालूम नहीं पड़ता
गम और ख़ुशी की घड़ियाँ हैं बेतरतीब दोस्तो ।
फूल-सी खूबसूरत मगर काँटों से सजी हुई
दास्तां जिन्दगी की है बड़ी ही अजीब दोस्तो ।
तमाम हुनर सीखे बस जीने के हुनर के सिवा
तुम भी देख लो, है ' विर्क ' किस कद्र गरीब दोस्तो ।
दिलबाग विर्क
* * * * *
8 टिप्पणियां:
सटीक बात कहती गज़ल ..अच्छी लगी
बहुत उम्दा खयालात/अशआर...
सादर...
sundar rachna
कब गम मिले, कब ख़ुशी, कुछ मालूम नहीं पड़ता
गम और ख़ुशी की घड़ियाँ हैं बेतरतीब दोस्तो
यही है जिन्दगी ।
खूबसूरत गज़ल ।
कोई भी तो नहीं होता इतना करीब दोस्तो
खुद ही उठानी पडती है अपनी सलीब दोस्तो.
...बहुत खूब...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल
देख गरीबी विर्क की, है नसीब हैरान |
दगाबाज थी दोस्ती, दुश्मन पर कुर्बान ||
behtarin prastuti
कब गम मिले, कब ख़ुशी, कुछ मालूम नहीं पड़ता
गम और ख़ुशी की घड़ियाँ हैं बेतरतीब दोस्तो
bahut khoob! umda ghazal
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