हाले-दिल उन्हें बता न पाए ,बस यही खता रही ।
इसी सबब के चलते उम्र भर तड़पने की सजा रही ।
हम अभी राह में थे , वो पार कर गए कई मंजिलें
वो बादलों के हमख्याल थे, दोस्त उनकी हवा रही ।
दुश्मन तो न था जमाना फिर भी दुश्मन-सा लगा
शायद नसीब की बदौलत ही हर दुआ बद दुआ रही ।
इस जमाने की तमाम महफ़िलों की रौनक रहे वो
और उम्र भर तन्हाई करती मुझसे वफा रही ।
न तो मैं हो सका किसी का, न ही मेरा हुआ कोई
मेरी तकदीर भी मेरी ही तरह सबसे जुदा रही ।
क्या बताऊँ विर्क क्यों न हुई ख़ुशी से मुलाकात मेरी
मैं तो खुद न जान पाया, मजबूरियां मेरी क्या रही ।
* * * * *
इसी सबब के चलते उम्र भर तड़पने की सजा रही ।
हम अभी राह में थे , वो पार कर गए कई मंजिलें
वो बादलों के हमख्याल थे, दोस्त उनकी हवा रही ।
दुश्मन तो न था जमाना फिर भी दुश्मन-सा लगा
शायद नसीब की बदौलत ही हर दुआ बद दुआ रही ।
इस जमाने की तमाम महफ़िलों की रौनक रहे वो
और उम्र भर तन्हाई करती मुझसे वफा रही ।
न तो मैं हो सका किसी का, न ही मेरा हुआ कोई
मेरी तकदीर भी मेरी ही तरह सबसे जुदा रही ।
क्या बताऊँ विर्क क्यों न हुई ख़ुशी से मुलाकात मेरी
मैं तो खुद न जान पाया, मजबूरियां मेरी क्या रही ।
* * * * *
6 टिप्पणियां:
वाह!!!!
दुश्मन तो न था जमाना फिर भी दुश्मन-सा लगा
शायद नसीब की बदौलत ही हर दुआ बद दुआ रही ।
बेहतरीन अ-गज़ल..
सादर.
दुश्मन तो न था जमाना फिर भी दुश्मन-सा लगा
शायद नसीब की बदौलत ही हर दुआ बद दुआ रही ।
बहुत खूब ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
कल शाम से नेट की समस्या से जूझ रहा था। इसलिए कहीं कमेंट करने भी नहीं जा सका। अब नेट चला है तो आपके ब्लॉग पर पहुँचा हूँ!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बहुत खूब दिलबाग भाई...
कितनी सहजता से अपनी बात कह दी ..बहुत ही प्रभापूर्ण अभिव्यक्ति .....
हम अभी राह में थे , वो पार कर गए कई मंजिलें
वो बादलों के हमख्याल थे, दोस्त उनकी हवा रही ।
वाह बहुत खूब ....सहज और सरल अभिव्यक्ति
एक टिप्पणी भेजें