शुक्रवार, फ़रवरी 03, 2012

हो सके तो ( कविता )

अगर 
हो सके तो 
प्यार के फूल खिलाना
जिससे महक सके 
घर आंगन
अगर
ऐसा संभव न हो तो
कम - से - कम 
बचना
नफरत की दीवार उठाने से
क्योंकि
युग लगते हैं
नफरत की
एक - एक
ईंट गिराने में ।

* * * * *

5 टिप्‍पणियां:

Anamikaghatak ने कहा…

bahut hi sundar dhng se nafrat se bachne ka paigam diya hai apne...badhiya

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

क्योंकि
युग लगते हैं
नफरत की
एक - एक
ईंट गिराने में ।

शानदार सन्देश देती ख़ूबसूरत रचना !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सच में युग लगते हैं..... सुंदर विचार

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

क्योंकि
युग लगते हैं
नफरत की
एक - एक
ईंट गिराने में

सार्थक संदेश देती अच्छी रचना

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

bahut khubsurat vichar...:))

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