स्वार्थ का पाठ
" वीरू को कहाँ लेकर गए हैं ? "- सरला के भतीजे चिंटू ने सरला से पूछा । ' वीरू' नाम है बछड़े का । ये नामकरण भी उसी ने किया था । इसके पीछे उसका तर्क था कि जब हम सबका नाम है तो बछड़े का क्यों नहीं ? आदमियों, पशुओं, पक्षियों सबसे अपनत्व का भाव बच्चों का ही काम है वरना हम तो...
" बाहर कहीं दूर छोड़ने गए हैं ।" - सरला ने उत्तर दिया ।
" तो क्या सोना ( उसी के द्वारा दिया गया बछिया का नाम ) को भी छोड़कर आएँगे ।" - उसने नया प्रश्न किया ।
" नहीं ।"
" क्यों, सोना को क्यों नहीं ?"
" वह बड़ी होकर गाय बनेगी, दूध देगी ।"
" और वीरू ?"
" वह बड़ा होकर बैल बनता । अब खेतों में ट्रैक्टर हैं इसलिए बैलों की जरूरत नहीं, इसीलिए वह हमारे किसी काम का नहीं ।"
" जो काम का नहीं होता क्या उसे बाहर छोड़ दिया जाता है ?"- चिंटू ने न्य प्रश्न दागा
" हाँ । "- सरला ने पीछा छुड़ाने की नीयत से कहा ।
" जब हम काम के नहीं रहेंगे तब हमें भी बाहर छोड़ दिया जाएगा ?"- एक और घातक प्रश्न सरल के सामने था । इस प्रश्न का उत्तर तो वो क्या दे सकती थी । हाँ, इतना अहसास उसे जरूर हो गया था कि हमारे ही कृत्य बच्चों को स्वार्थ का पहला पाठ पढ़ा देते हैं ।
" वह बड़ी होकर गाय बनेगी, दूध देगी ।"
" और वीरू ?"
" वह बड़ा होकर बैल बनता । अब खेतों में ट्रैक्टर हैं इसलिए बैलों की जरूरत नहीं, इसीलिए वह हमारे किसी काम का नहीं ।"
" जो काम का नहीं होता क्या उसे बाहर छोड़ दिया जाता है ?"- चिंटू ने न्य प्रश्न दागा
" हाँ । "- सरला ने पीछा छुड़ाने की नीयत से कहा ।
" जब हम काम के नहीं रहेंगे तब हमें भी बाहर छोड़ दिया जाएगा ?"- एक और घातक प्रश्न सरल के सामने था । इस प्रश्न का उत्तर तो वो क्या दे सकती थी । हाँ, इतना अहसास उसे जरूर हो गया था कि हमारे ही कृत्य बच्चों को स्वार्थ का पहला पाठ पढ़ा देते हैं ।
दिलबाग विर्क
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7 टिप्पणियां:
acchi rachna,ahsas karane wali , sochne ko majboor karne wali katha
बहुत सुन्दर लगा! उम्दा प्रस्तुती!
यद्यपि अमूमन बच्चे ही बड़ों का साथ छोड़ते देखे गए हैं,निश्चय ही,इसकी नींव बड़ों के व्यवहार से ही पड़ती होगी।
बहुत शिक्षाप्रद और रोचक प्रस्तुति..
बात तो सही है...बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं|
हिन्दी हाइगा पर फॉलोअर बनने के लिए हार्दिक आभार|
गहन बात कह दी इस लघुकथा में ..
बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी लघुकथा।
सादर
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