ख़ुशी का न हुआ मेरी जिन्दगी में आगाज
गम मेरी खामोशी , गम ही मेरी आवाज ।
दिल का दर्द दिखाना चाहता था मैं मगर
दिखा पाया सिर्फ चंद आंसू , चंद अल्फाज ।
क्या मजबूरियां थीं मालूम नहीं लेकिन
दफन होकर रह गया सीने में एक राज ।
खुद को टटोलने की जहमत भी उठा लेता
काश ! जाने से पहले वो कह जाता दगाबाज ।
दामन में भर दो जमाने भर की रुसवाइयां
कब माँगा है मैंने किसी से कोई एजाज ।
शायद यही एक कमी थी जीने के ढंग में
उठा न पाया मैं विर्क इस जिन्दगी के नाज ।
गम मेरी खामोशी , गम ही मेरी आवाज ।
दिल का दर्द दिखाना चाहता था मैं मगर
दिखा पाया सिर्फ चंद आंसू , चंद अल्फाज ।
क्या मजबूरियां थीं मालूम नहीं लेकिन
दफन होकर रह गया सीने में एक राज ।
खुद को टटोलने की जहमत भी उठा लेता
काश ! जाने से पहले वो कह जाता दगाबाज ।
दामन में भर दो जमाने भर की रुसवाइयां
कब माँगा है मैंने किसी से कोई एजाज ।
शायद यही एक कमी थी जीने के ढंग में
उठा न पाया मैं विर्क इस जिन्दगी के नाज ।
* * * * *
10 टिप्पणियां:
अब से पहले का जिक्र छोडिये दिलबाग जी...
आपने बेहद खूबसूरत अगज़ल लिखी है आज...
:-)
सादर.
पंक्तियां खुबसूरत है ...दिल की गहराहिओं से निकली हुई
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!
बढ़िया प्रभाव ।
बढ़िया प्रभाव ।
पुस्तक के लिए बधाई .... सुंदर अभिव्यक्ति
खुद को टटोलने की जहमत भी उठा लेता
काश ! जाने से पहले वो कह जाता दगाबाज ।
बहुत सटीक कही है, दगाबाज कह जाते तो कम से कम कुछ तो अपनी कमी ढुंढता।
bahut hi sunder....
बहुत सुन्दर... वाह!
सादर बधाई.
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