मंगलवार, मार्च 20, 2012

अग़ज़ल - 37

      ख़ुशी का न हुआ मेरी जिन्दगी में आगाज 
       गम मेरी खामोशी , गम ही मेरी आवाज ।
 
       दिल का दर्द दिखाना चाहता था मैं मगर
       दिखा पाया सिर्फ चंद आंसू , चंद अल्फाज ।


       क्या मजबूरियां थीं मालूम नहीं लेकिन
       दफन होकर रह गया सीने में एक राज ।


       खुद को टटोलने की जहमत भी उठा लेता
       काश ! जाने से पहले वो कह जाता दगाबाज ।


       दामन में भर दो जमाने भर की रुसवाइयां
       कब माँगा है मैंने किसी से कोई एजाज ।


       शायद यही एक कमी थी जीने के ढंग में
       उठा न पाया मैं विर्क इस जिन्दगी के नाज ।


* * * * *

10 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

अब से पहले का जिक्र छोडिये दिलबाग जी...
आपने बेहद खूबसूरत अगज़ल लिखी है आज...
:-)

सादर.

Rohit Singh ने कहा…

पंक्तियां खुबसूरत है ...दिल की गहराहिओं से निकली हुई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रभाव ।

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रभाव ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

पुस्तक के लिए बधाई .... सुंदर अभिव्यक्ति

Arun sathi ने कहा…

खुद को टटोलने की जहमत भी उठा लेता
काश ! जाने से पहले वो कह जाता दगाबाज ।

Arun sathi ने कहा…

बहुत सटीक कही है, दगाबाज कह जाते तो कम से कम कुछ तो अपनी कमी ढुंढता।

kalp verma ने कहा…

bahut hi sunder....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बहुत सुन्दर... वाह!
सादर बधाई.

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