चलने को तो हम साथ चलते हैं
मगर ये दिल हैं कि कहाँ मिलते हैं ।
मुझे नफरत है नकाबपोशी से
और वो रोज चेहरा बदलते हैं ।
फिर दुनिया से शिकवा करें कैसे
आस्तीन में ही जब सांप पलते हैं ।
उन्हें भी होगा गरूर जवानी का
इस मौसम में सबके पर निकलते हैं ।
मजहबों की आग को ठंडा करो
इसमें हजारों इंसान जलते हैं |
मुहब्बत को विर्क आजमाते रहना
सुना है इससे पत्थर पिघलते हैं ।
इसमें हजारों इंसान जलते हैं |
मुहब्बत को विर्क आजमाते रहना
सुना है इससे पत्थर पिघलते हैं ।
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12 टिप्पणियां:
फिर दुनिया से शिकवा करें कैसे
आस्तीन में ही जब सांप पलते हैं ।
बेहतरीन ग़ज़ल! आज तो हर ओर हैं ...
बहुत सुन्दर गजल...हर शेर बहुत बढिया है। बधाई स्वीकारें।
वह वाह! वह वाह!
वाह...........
बहुत बढ़िया सर.
मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ मेरा मार्ग दर्शन करे !
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
सुंदर गजल हमेशा कि तरह ही हर एक शेर लाजवाब अपने आपमें एक जीवन दर्शन समेटे
कोई फ़र्क़ नहीं,ग़ज़ल हो कि अग़ज़ल
आप जो भी कहें,अच्छे लगते हैं!
बेहतरीन ....
सुंदर....
बहुत अच्छा लगा ..अपना समर्थन और स्नेह बनाये रखें ..भ्रमर ५
भ्रमर
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
भ्रमर का दर्द और दर्पण
बहुत अच्छा लगा ..अपना समर्थन और स्नेह बनाये रखें ..भ्रमर ५
भ्रमर
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
भ्रमर का दर्द और दर्पण
बहुत बढ़िया प्रस्तुति |
बधाईयाँ ||
वाह!...बहुत सुन्दर गजल!...पढ़ कर मजा आ गया!...बधाई!
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