देखो बिन बुलाए यह उम्र भर का मेहमां हो गया ।
तन्हा थे उस दिन जब सोची थी मुहब्बत की बात
धीरे-धीरे अब साथ अश्कों का कारवां हो गया ।
मैं पागल था जो सरेआम कह बैठा चाँद उन्हें
और उन्हें मेरी इसी बात का गुमां हो गया ।
क्या करें, सदा मेरी अब उन तक पहुंचती ही नहीं
चंद दिनों में ही वो दूर होकर कहकशां हो गया ।
कभी हल्का-ए- गिर्दाब से निकाल लाए थे कश्ती
मगर आज हवा का हल्का-सा झोंका तूफां हो गया ।
तन्हाइयों में बैठकर विर्क अब सोचते हैं अक्सर
ख़ुशी क्यों न मिली, क्यों हर यत्न रायगां हो गया ।
दिलबाग विर्क
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गुमां - घमंड
कहकशां - आकाश गंगा
हल्का-ए- गिर्दाब - भंवर की परिधि
रायगां - निष्फल
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5 टिप्पणियां:
आपके शब्द ,मेरी पसंद**** मैं पागल था जो सरेआम कह बैठा चाँद उन्हें
और उन्हें मेरी इसी बात का गुमां हो गया ।
क्या करें, सदा मेरी अब उन तक पहुंचती ही नहीं
चंद दिनों में ही वो दूर होकर कहकशां हो गया ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई ...
मैं पागल था जो सरेआम कह बैठा चाँद उन्हें
और उन्हें मेरी इसी बात का गुमां हो गया ...बहुत उम्दा गज़ल..बधाई
सुन्दर ग़ज़ल
sundar gazal
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