हम भी गुजरे थे इस रहगुजर से
गम ही मिलते हैं प्यार के सफर से ।
जुबां बे'मानी है मुहब्बत में
ये खेल खेले जाते हैं नजर से ।
कुछ परवाह नहीं मेरे दिल की
वास्ता पड़ा है कैसे पत्थर से ।
बहुत बड़ी नहीं मेरी ख्वाहिशें
मैं वाकिफ हूँ अपने मुकद्दर से ।
दहशत के लोग इस कद्र आदी हैं
हैरानी होती नहीं किसी खबर से ।
ये हल न हुआ विर्क मसलों का
आँखें बंद कर लो अगर डर से ।
दिलबाग विर्क
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9 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति....
बहुत सुन्दर रचना
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क्या आपको अपना मोबाइल नम्बर याद नहीं
वाह बहुत खूब
सुन्दर प्रस्तुति।।
घुइसरनाथ धाम - जहाँ मन्नत पूरी होने पर बाँधे जाते हैं घंटे।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.!
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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सुन्दर प्रस्तुति
sundar abhivyakti .badhai
waah shandar..
पत्थरों से कैसी उम्मीद !
भावपूर्ण पंक्तियाँ !
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