बुधवार, जून 12, 2013

अगजल - 60

चंद आंसू चंद अल्फाज लेबल की अंतिम रचना । दरअसल यह मेरा कविता संग्रह ( तुकान्तक परन्तु बहर विहीन ) है और इस संग्रह की रचनाएँ उसी क्रम से यहाँ प्रस्तुत की गई हैं । आपकी प्रतिक्रियाएं मिली , इसके लिए आपका आभार । 

      उल्फत बुरी थी या हम, ये सोचा करते हैं 
      क्यों हमदम बने हैं गम, ये सोचा करते हैं । 

      दिल के जख्म क्या सचमुच लाईलाज होते हैं ?
      लगाएं कौन-सी मरहम, ये सोचा करते हैं ।

      दगाबाज लगे है इस जमाने का हर शख्स 
      किसको कहें अब सनम, ये सोचा करते हैं ।

      यादों के जो पल सजा रखे हैं जहन में वो 
      शरारे हैं या शबनम, ये सोचा करते हैं ।

      जिस बेवफा से वास्ता नहीं, उसे याद कर 
      क्यों होती है आँख नम, ये सोचा करते हैं ।

      कमी मेरी चाहत में थी या तकदीर में 
      विर्क मेरे क्यों न हुए तुम, ये सोचा करते हैं ।

                      दिलबाग विर्क                          
                         *******

4 टिप्‍पणियां:

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

जिस बेवफा से वास्ता नहीं, उसे याद कर
क्यों होती है आँख नम, ये सोचा करते हैं ।
waah bahut acchha ...yahin dil ke aage majboor ho jaate hain .....

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

जिस बेवफा से वास्ता नहीं, उसे याद कर
क्यों होती है आँख नम, ये सोचा करते हैं ।
--dil to pagal hai Dilbag bhai,

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Madan Mohan Saxena ने कहा…

सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति

Madabhushi Rangraj Iyengar ने कहा…




सर,

बहुत सुंदर गजल पेश की है आपने.

धन्यवाद,

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