दिन खुलकर हँसते हैं, रातें रोती हैं ।
कुदरत की बातें भी मेरे जैसी हैं ।
आँसू कहता कोई कहता है शबनम
कोई फर्क नहीं, ये बूँदें मोती है ।
कुछ तो राज छुपा है उनकी बातों में
सबसे छुपकर जो सिर जोड़े बैठी हैँ ।
लोग चला करते पर्दे के पीछे से
शतरंजी चालें क्या तुमने देखी हैं ?
जो बातें ढल पाई मेरी ग़ज़लों में
कुछ जग पर बीती, कुछ खुद पर बीती हैं ।
रिश्तों में ' विर्क ' दरार यही डालेंगी
जो बातें अब लगती छोटी-छोटी हैं ।
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