मंगलवार, अगस्त 19, 2014

मेरा ग़म मुझे उठाना होगा

किस दर्द का जिक्र छेड़ूँ मैं, कौन-सी दवा बताओगे ?
जाने-अनजाने तुम भी तो मेरे ज़ख़्म सहलाओगे । 

भर दोगे अश्क़ मेरी आँखों में, खुद को भी रुलाओगे 
छोड़ो मुझे मेरे हाल पर, इस दास्तां से क्या पाओगे ?
टोकरी नहीं फूलों की जो मेरी जगह उठा लो तुम 
मेरा ग़म मुझे उठाना होगा, तुम कैसे उठाओगे ?

मानने को तैयार हूँ मैं सब मशविरे मगर बताओ 
तुम दिल के कंगूरों से, क्या यादों को भी उड़ाओगे ?

तुम्हारे ज़हन में होंगे खुद के हजारों मसले इसलिए 
याद रखोगे मुझे कुछ देर, फिर सब कुछ भुलाओगे । 

सोचोगे ' विर्क ' बाद में, यूँ ही वक़्त जाया किया मैंने 
पल-दो-पल बातें करके मुझसे, तुम फिर पछताओगे । 

दिलबाग विर्क 
*****
काव्य संकलन - अंतर्मन 
प्रकाशक - अनिल शर्मा ' अनिल '
प्रकाशन - अमन प्रकाशन, धामपुर { बिजनौर }
प्रकाशन वर्ष - 2007 

1 टिप्पणी:

Malhotra vimmi ने कहा…

भावपूर्ण रचना।
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां।

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