किस दर्द का जिक्र छेड़ूँ मैं, कौन-सी दवा बताओगे ?
जाने-अनजाने तुम भी तो मेरे ज़ख़्म सहलाओगे ।
भर दोगे अश्क़ मेरी आँखों में, खुद को भी रुलाओगे
छोड़ो मुझे मेरे हाल पर, इस दास्तां से क्या पाओगे ?
टोकरी नहीं फूलों की जो मेरी जगह उठा लो तुम
मेरा ग़म मुझे उठाना होगा, तुम कैसे उठाओगे ?
मानने को तैयार हूँ मैं सब मशविरे मगर बताओ
तुम दिल के कंगूरों से, क्या यादों को भी उड़ाओगे ?
तुम्हारे ज़हन में होंगे खुद के हजारों मसले इसलिए
याद रखोगे मुझे कुछ देर, फिर सब कुछ भुलाओगे ।
सोचोगे ' विर्क ' बाद में, यूँ ही वक़्त जाया किया मैंने
पल-दो-पल बातें करके मुझसे, तुम फिर पछताओगे ।
दिलबाग विर्क
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काव्य संकलन - अंतर्मन
प्रकाशक - अनिल शर्मा ' अनिल '
प्रकाशन - अमन प्रकाशन, धामपुर { बिजनौर }
प्रकाशन वर्ष - 2007
1 टिप्पणी:
भावपूर्ण रचना।
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां।
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