शनिवार, नवंबर 22, 2014

राम भरोसे

राम भरोसे चल रहा, मेरा भारत देश 
इसे लुटेरे लूटते, धर साधू का वेश। 
धर साधू का वेश, सभी ने भरी तिजौरी 
ठग, भ्रष्ट और चोर, करें हैं सीनाज़ोरी । 
कहता सबसे ' विर्क ', कौन अब किसको कोसे 
भारत देश महान, चले है राम भरोसे । 

दिलबाग विर्क 
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बुधवार, नवंबर 19, 2014

दिल पागल है

बड़ी उलझन है, बड़ी मुश्किल है 
सीने  में  बैठा  दिल  पागल  है । 

बेगानों  से  बढ़कर  हैं  अपने 
खामोश रहो, फ़िज़ा बोझिल है । 

जिसे भुलाना है, उसी को सोचूँ 
फिर पूछूँ, क्यों वो याद हर पल है ?

मुहब्बत की राह आसां तो नहीं 
यहाँ बेवफ़ाइयों की दलदल है । 

लोगों जैसा समझदार नहीं हूँ 
मेरे लिए तो वफ़ा ही मंजिल है । 

तमाचा है आदमियत के मुँह पर 
हो रहा ' विर्क ' जो कुछ आजकल है । 

दिलबाग विर्क 
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काव्य संकलन - काव्य गंगा 
संपादक - रविन्द्र शर्मा 
प्रकाशन - रवि प्रकाशन, बिजनौर ( उ.प्र. )
प्रकाशन वर्ष - 2008  




बुधवार, नवंबर 12, 2014

आओ दिल को चुप रहने की कहें

हो सके तो तुम भूल जाना उन्हें 
सपनों में ख़ुदा माना था जिन्हें । 

जिधर से आई है ये रेत ग़म की 
उधर जाने की कौन कहे तुम्हें । 

भूल जाओ ग़म का हर फ़साना 
मुस्कराना सदा, याद कर हसीं लम्हें । 
उफनता सागर जाने क्या करेगा 
आओ दिल को चुप रहने की कहें । 

अश्कों के कारवां को बुलाओ पास 
बेवफ़ा शहर में हम क्यों तन्हा रहें । 

वफ़ा के लिए मरना अपनी रस्म है 
उनकी रस्में ' विर्क ' हों मुबारक उन्हें । 

दिलबाग विर्क 
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काव्य संकलन - काव्य सुधा 
संपादक - प्रदीप मणि " ध्रुव "
प्रकाशन - मध्य प्रकाश नवलेखन संघ, भोपाल 
प्रकाशन वर्ष - 200 7 

मंगलवार, नवंबर 04, 2014

खुशियाँ जगमगाती हैं दिवाली में

दिलों को दीपमालाएँ लुभाती हैं दिवाली में 
जमीं को देख परियाँ मुस्कराती हैं दिवाली में |

जरूरी हार इनकी, ये अँधेरे हार जाते हैं 
शमाएँ मिल असर अपना दिखाती हैं दिवाली में |
मजे से ज़िंदगी जीना कभी तुम सीखना इनसे 
जवां दिल की उमंगें गीत गाती हैं दिवाली में |

यही सच, दौर कितना भी बुरा हो, बीत जाता है 
गमों को जीत, खुशियाँ जगमगाती हैं दिवाली में |

न समझो शोर इसको ' विर्क ' बच्चों के पटाखों का 
दबी-सी ख्बाहिशें आवाज़ पाती हैं दिवाली में |

दिलबाग विर्क 
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तरही मिसरे पर आधारित शे'र -
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