हो सके तो तुम भूल जाना उन्हें
सपनों में ख़ुदा माना था जिन्हें ।
जिधर से आई है ये रेत ग़म की
उधर जाने की कौन कहे तुम्हें ।
भूल जाओ ग़म का हर फ़साना
मुस्कराना सदा, याद कर हसीं लम्हें ।
उफनता सागर जाने क्या करेगा
आओ दिल को चुप रहने की कहें ।
अश्कों के कारवां को बुलाओ पास
बेवफ़ा शहर में हम क्यों तन्हा रहें ।
वफ़ा के लिए मरना अपनी रस्म है
उनकी रस्में ' विर्क ' हों मुबारक उन्हें ।
दिलबाग विर्क
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काव्य संकलन - काव्य सुधा संपादक - प्रदीप मणि " ध्रुव "
प्रकाशन - मध्य प्रकाश नवलेखन संघ, भोपाल
प्रकाशन वर्ष - 200 7
5 टिप्पणियां:
अश्कों के कारवां को बुलाओ पास
बेवफ़ा शहर में हम क्यों तन्हा रहें ।
बेहद खूबसूरत पंक्तियां।
वाह ... लाजवाब शेर हैं ग़ज़ल के ...
वफ़ा के लिए मरना अपनी रस्म है
उनकी रस्में ' विर्क ' हों मुबारक उन्हें । .
...लाजवाब...
वाह
सुन्दर प्रस्तुति
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