बुधवार, नवंबर 12, 2014

आओ दिल को चुप रहने की कहें

हो सके तो तुम भूल जाना उन्हें 
सपनों में ख़ुदा माना था जिन्हें । 

जिधर से आई है ये रेत ग़म की 
उधर जाने की कौन कहे तुम्हें । 

भूल जाओ ग़म का हर फ़साना 
मुस्कराना सदा, याद कर हसीं लम्हें । 
उफनता सागर जाने क्या करेगा 
आओ दिल को चुप रहने की कहें । 

अश्कों के कारवां को बुलाओ पास 
बेवफ़ा शहर में हम क्यों तन्हा रहें । 

वफ़ा के लिए मरना अपनी रस्म है 
उनकी रस्में ' विर्क ' हों मुबारक उन्हें । 

दिलबाग विर्क 
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काव्य संकलन - काव्य सुधा 
संपादक - प्रदीप मणि " ध्रुव "
प्रकाशन - मध्य प्रकाश नवलेखन संघ, भोपाल 
प्रकाशन वर्ष - 200 7 

5 टिप्‍पणियां:

Malhotra vimmi ने कहा…

अश्कों के कारवां को बुलाओ पास

बेवफ़ा शहर में हम क्यों तन्हा रहें ।

बेहद खूबसूरत पंक्तियां।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह ... लाजवाब शेर हैं ग़ज़ल के ...

कविता रावत ने कहा…

वफ़ा के लिए मरना अपनी रस्म है
उनकी रस्में ' विर्क ' हों मुबारक उन्हें । .
...लाजवाब...

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

Onkar ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

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