दौड़ता नहीं अब
होशियार बच्चे की तरह
उसे धकेला जाता है
जैसे धकेलते हैं माँ-बाप
नालायक रोंदू बच्चे को
चॉकलेट का लालच देकर
चॉकलेट का लालच देकर
स्कूल में अध्यापक
चपड़ासी, क्लर्क, नौटँकीबाज
सब कुछ है
बस अध्यापक होने के सिवा
शिक्षक से छीनकर
शिक्षण कार्य
भला चाहा जा रहा है
शिक्षा का
और शिक्षा के पतन पर
घड़ियाली आँसू बहा रहे हैं वो
जो खुद धकेल रहे हैं इसे
रसातल में
नित नए प्रयोग करके ।
दिलबाग विर्क
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6 टिप्पणियां:
सच है पर सुनना कौन चाहता है :)
शिक्षक से छीनकर
शिक्षण कार्य
भला चाहा जा रहा है
शिक्षा का
और शिक्षा के पतन पर
घड़ियाली आँसू बहा रहे हैं वो
जो खुद धकेल रहे हैं इसे
रसातल में
नित नए प्रयोग करके
बिल्कुल सही।
लेकिन कौन सुनने वाला है।
सुंदर रचना।
बहुत बहुत बहुत ही सही लिखा है |
सटीक रचना
आज शिक्षा जगत की इस अवनति का कारण है इसमें उन लोगों का दखल जिन्हें इस बारे में कोई व्यावहारिक अनुभव नहीं है. बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति..
यथार्थ।
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